मंगलवार, मार्च 30, 2010

दिल्ली मांगे पानी सरकार कहे कहानी

दिल्ली मांगे पानी सरकार कहे कहानी

राजनीतिक स्वार्थ, जल बोर्ड की लापरवाही और जलमाफिया को संरक्षण के चलते इन दिनों देश की धड़कन दिल्ली में कृत्रिम रूप से जल संकट पैदा किया जा रहा हैै। इसके बावजूद दिल्ली सरकार जलापूर्ति के लिए आए दिन केंद्र के सामने रोना रोती रहती है और उत्तर प्रदेश से और जलापूर्ति के लिए दबाव बनाने का हरसंभव प्रयास करती रहती हैै। जबकि दिल्ली सरकार व दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़ों की जबानी जलापूर्ति और मांग की जो कहानी सामने आती है उसके तथ्य चौंकाने वाले हैं। यदि इन तथ्यों पर गौर करें तो स्पष्टï होता है कि दिल्ली सरकार पानी मामले पर भ्रमपूर्ण स्थिति पैदा कर अपनी कारगुजारियों पर लीपापोती ही नहीं कर रही, अपितु दिल्ली की जनता के विश्वास पर भी कुठाराघात कर रही हैै।
दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि जलबोर्ड लगभग 690 एमजीडी जल शोधन करता है और 100 से 150 एमजीडी भूजल भी उठाता है अर्थात्ï 790 से 840 एमजीडी जल बोर्ड के पास उपलब्ध है। और भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार दिल्ली में प्रति व्यक्ति 170 लीटर की जल की प्रतिदिन आवश्यकता है, तदनुसार दिल्ली की डेढ़ करोड़ आबादी को 570 एम जीडी पानी मिलने से ही उसकी प्यास बुझ जाती हैै। जबकि दिल्ली के पास 840 एमजीडी जल उपलब्ध है यानि 270 एमजीडी पानी ज्यादा है, फिर दिल्ली प्यासी क्यों हैं।
दिल्ली की जलीय वितरण व्यवस्था चरमराने के बाद 1998 में सरकार ने दिल्ली जल बोर्ड का गठन किया था, जिसका उद्देश्य दिल्ली को स्वच्छ एवं यथावश्यक पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था करना था, परंतु बारह वर्ष बीतने पर भी समस्या घटने के स्थान पर बढ़ती जा रही है और अतिरिक्त मात्रा में जल उपलब्ध होने के बावजूद आपूर्ति का 40 प्रतिशत पानी रिसाव के कारण नालों की भेंंट चढ़ जाता है। दिल्ली जलबोर्ड के अधिकारी रिसाव के कारण जलसंकट नहीं मानते, लेकिन स्वीकार करते हैं कि प्रतिमाह पाइप लाइनों में होने वाले रिसाव से 92 से 120 एमजीडी पानी नालों में बह जाता है, यह जलबोर्ड की लापरवाही का नमूना ही कि सारी मशक्कतों के बाद जलबोर्ड केवल 43 एमजीडी रिसाव ही रोक पाता हैै, यानि रिसाव का 60 प्रतिशत से ज्यादा पानी देखती आंखों जाया हो रहा हैै। बावजूद 840 एमजीडी जल उपलब्धता के दिल्ली जल बोर्ड का तुर्रा है कि उसे दिल्ली की प्यास बुझाने के लिए 850 एमजीडी जल चाहिए और उसके पास 210 एमजीडी जल कम हैै, दिल्ली की जनता के साथ बहुत बड़ा धोखा हैै।
केवल लापरवाही होती तो भी काम चल जाता। दिल्ली जलबोर्ड के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से जल माफिया को संरक्षण देकर जलबोर्ड के संयंत्रों से आ रही मैन पाइप लाइन पर हाईड्रेन्ट लगाकर दस रुपये प्रति 20 लीटर में बोतलें भरी जा रही हैं और उन्हें लगभग 40 हजार रिक्शाओं के माध्यम से दिल्ली की विभिन्न पॉश कालोनियों मेंं 20 रुपये प्रति 20 लीटर की दर से बचा जा रहा है। इसके अलावा लगभग 700 टैैंकरों को 100 रुपये प्रति टैंकर पानी अवैध रूप से दिया जाता है जो 500 से 1000 रुपये प्रति टैंकर की दर पर बिकता हैै। दिल्ली में ये प्राइवेट टैंकर 4 से 5 बार रोजाना अवैध जल विक्रय करते हैैं और 4 से 8 लाख रुपये प्रतिदिन उगाही करते हैं, यानि प्यासी दिल्ली से लगभग 2 करोड़ रुपये प्रतिमाह बनाते हैं जो बिना अधिकारियों की मिलीभगत के संभव ही नहीं हैै। दक्षिणी दिल्ली के तुगलकाबाद, बदरपुर, महरौली, कालकाजी, अम्बेडकरनगर, साकेत गंगपुरा, ओखला, डीडीए फ्लैट, जसोला, सरिता विहार और हरकेश नगर आदि क्षेत्रों में अवैध जल टैंकर घरों की टंकी में पानी चढ़ाने के 50 से 100 रुपये अतिरिक्त भी वसूल कर लेते हैं। यह खेल कोई एक दिन का नहीं हैै, दिल्ली में रोजाना या नजारे देखे जा सकते हैं। लापरवाही, जलमाफिया से मिलकर कालाबाजारी के अलावा जल बोर्ड की पाइप लाइनों को सीवर लाइनों व नालियों के साथ बिछाने के कारण रिसाव वाले स्थानों से जल के साथ मल व गंदगी भी सप्लाई हो रहा है, जिससे कुछ स्थानों पर बदबू वाला गंदा पानी पहुंच रहा हैै।
जलबोर्ड के अधिकारियों की बोतलबंद पानी के निर्माताओं से मिलीभगत के कारण लगातार शिकायतों के बाद भी आपूर्ति जल में गंदगी का मिलना नहीं रोका जा रहा हैै। जिसके चलते एक बड़े वर्ग का विश्वास दिल्ली जलबोर्ड के जल की शुद्धता से उठ गया है और वे बोतल बंद पानी पर विश्वास करने को मजबूर हुए। इसके अलावा तमाम होटलों से लेकर अस्पतालों तक लगभग दस लाख बोतल पानी बिकता है, जिसके लिए दिल्ली वासी लगभग एक करोड़ रुपये प्रतिदिन खर्च करते हैं। दिल्ली जलबोर्ड के मुताबिक बोतल बंद पानी के लगभग 5 दर्जन ब्रांड बाजार में हैं। इनके अलावा करीब दो लाख रेहडियां भी दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर पचास पैसे प्रति गिलास की दर से पानी बेच रही हैं, अमूमन 1 रेहडी में 100 लीट पानी आता है। इस प्रकार लगभग 4 करोड़ रुपये का पानी दिल्ली में प्रतिदिन रेहडी पर बिक जाता हैै।

पानी की राजनीतिक अखाड़ेबाजी

कहा जाता हैै कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा। लेकिन देश के विभिन्न राज्यों में सत्ता पाने के लिए पानी का सहारा लेना नई बात नहीं है। कावेरी जल विवाद हो या गंगा जल विवाद, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, जैसे उत्तरी राज्यों से लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक तक में पानी चुनावी मुद्दा बन जाता है, यही नहीं, वहां पानी के कारण दंगों जैसे हालात भी पैदा हो जाते हैं, दिल्ली को पानी दिये जाने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान आंदोलन करने लगता हैै। दिल्ली हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच है इसलिए पानी की आपूर्ति भी इन्हीं राज्यों से आने वाली नदियों के माध्यम से की जाती है।
चूंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के खेत गंगा के पानी से ही सींचे जाते हैं ऐसे में दिल्ली को पानी दिये जाने से उनकी सिंचाई पर फर्क पड़ता है। जब पहले से ही मुरादनगर से गंगा वाटर की सप्लाई दिल्ली को हो रही हो, अतिरिक्त आपूर्ति यहां के किसानों को नागवार गुजरती है। उनका मानना है कि दिल्ली को और पानी देना अपनी फसल को सुखाना है। जबकि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कहना हैै कि उसे उत्तर प्रदेश से 300 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए क्योंकि यूपी सरकार ने ऐसा वादा किया था, उधर, उत्तर प्रदेश सरकार ऐसे किसी वादे से इनकार करती है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश का किसान दिल्ली को और जल देने के पक्ष में इसलिए भी नहीं है क्योंकि दिल्ली सरकार ने फ्रांस की कंपनी स्वेज डेग्रामाउंट से अनुबंध किया है, जो सोनिया विहार संयंत्र से दिल्ली को जलापूर्ति करेगी। यह विश्व की बड़ी जल विक्रेता कंपनियों में गिनी जाती है, क्योंकि यह विदेशी कंपनी गंगा जल से निजी मुनाफा कमाएगी इसलिए भी किसान जलापूर्ति के विरोध में खड़े हैं। दिल्ली सरकार का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गंग नहर किनारे ट्यूबवैल लगाकर जल देने की बात भी किसानों के गले नहीं उतर रही है।

असमान वितरण बना संकट

जल बोर्ड की अदूरदर्शिता व कुप्रबंधन के चलते कई स्थानों पर मुख्य पाइप लाइन से ही डायरेक्ट कनेक्शन दे रखे हैं जिस कारण दक्षिणी दिल्ली तक पहुंचते-पहुंचते पानी का दबाव कम हो जाता है, जिससे वहां लोगों को रोटियां सूखी रहती हैं। इसके अलावा असामाय जल वितरण के चलते भी जलापूर्ति का संकट रहता हैै ।
एनडीएम सीके क्षेत्र में जहां मात्र 2 प्रतिशत आबादी ही रहती है, जल बोर्ड 400 लीटर प्रति व्यक्ति के अनुपात से भी ज्यादा आपूर्ति की जाती है और महरौली जैसे इलाके में मात्र 30 लीटर प्रति व्यक्ति के 50 लीटर प्रति व्यक्ति सप्लाई होती है और कैैंट को 350 लीटर। इस असमान आपूर्ति के चलते जलापूर्ति का आधारभूत ढांचा गड़बड़ा गया है और दिल्ली प्यासी मर रही हैै।

मांग और आपूर्ति पर एक नजर

  • वर्ष 2001
    मांग: 750 एमजीडी
    आपूर्ति : 585 एमजीडी
    जनसंख्या 1.31 करोड़

  • वर्ष 2006
    मांग : 850 एमजीडी
    आपूर्ति : 690 एमजीडी
    जनसंख्या 1.61

  • वर्ष 2011
    मांग : 1140 एमजीडी
    आपूर्ति : ?
    जनसंख्या 2.10 करोड़

  • वर्ष 2021
    मांग : 1180 एमजीडी
    आपूर्ति : ?
    जनसंख्या 2.30 करोड़

  • जल शोधन संयंत्र : क्षमता व उत्पादन
    संयंत्र क्षमता (एमजीडी) उत्पादन (एमजीडी) स्रोत
    हैदरपुर 200 220 पश्चिमी यमुना नहर
    चंद्रावल 90 98 यमुना
    वजीराबाद 120 134 यमुना
    भागीरथी 100 120 गंगनहर/यमुना
    नांगलोई 40 25 पश्चिमी यमुना नहर
    ओखला 12 3 यमुना किनार के वर्षा कुएं
    बवाना 90 - मुनक नहर
    सोनिया विहार 140 - गंग नहर
    ओखला - - मुनक नहर
    मुनक नहर - - मुनक नहर

  • भूजल 60 150 3 लाख 60 हजार नलकूप

  • जलबोर्ड का बेड़ा
    माउंटेड वाटर टैंक 303
    ट्राली टैंकर 249
    टैैक्टर टैैंकर 46
    ट्रक टैंकर 17
    ठेकेदारों के टैंकर 700

  • वितरण की स्थिति
    क्षेत्र प्रतिव्यक्ति आपूर्ति
    बाहरी दिल्ली 50-120 लीटर
    पश्चिमी दिल्ली 150-200 लीटर
    दिल्ली कैंट 200-350 लीटर
    दक्षिण -पश्चिम 30-100 लीटर
    दक्षिण दिल्ली 80-140 लीटर
    पूर्वी दिल्ली 120-150 लीटर
    एनडीएमसी 200-400 लीटर
    सिविल लाइन 250-350 लीटर
    करोलबाग 125-320 लीटर
    सभी स्रोत : दिल्ली जल बोर्र्ड
    -चंद्र शेखर शास्त्री

गुरुवार, मार्च 04, 2010

संवेदनहीन सांत्वना

वे लाशों पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आते...
जब भी कोई बड़ा हादसा होता है तो तमाम राजनेता वहां संवेदना व्यक्त करनेे पहुंच जाते हैं, पीडि़तों के बीच पहुंच कर वे संवेदनाएं कम, बयानबाजी ज्यादा करते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब वे लाशों पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आते। इन राजनेताओं के आने से हादसे में मारे गये या घायलों के परिजनों को सांत्वना तो क्या मिलती, ये संवेदनाहीनता का शिकार और हो जाते हैं। क्योंकि जो पुलिस-प्रशासन या सरकारी अमला, स्वयंसेवी संगठन व चिकित्सक पीडि़तों की मदद करते, वे इन 'वी आई पी आकाओंÓ की खैर-मकदम में जुट जाते हैं। ... और ऐसे में सांत्वना का संवेदनाहरण हो जाता हैै।
हादसे के बाद इन नेताओं की भीड़ उस हादसे से भी बड़ी हो जाती है, जिसका दंश हादसे के शिकार लोग झेल रहे होते हैं क्योंकि ये सत्ताधारी या सत्तालोलुप राजनेता, जो कभी न कभी कुर्सी पर विराजमान रहे हैं या वर्तमान में सरकार में हैं, 'अवसादÓ को 'अवसरÓ में बदलने के लिए हादसे को भी लाटरी के टिकट में तब्दील करने की पुरजोर कोशिश करते हैं। इनके लिए मातम भी कुर्सी पाने का खेल है, जनप्रतिनिधित्व की आड़ में हादसे को भुनाने के लिए सांत्वना के बजाए, राहत अफ़्जाई की कारगुजारियों पर निगाह रखने की बजाए, हाहाकार में भीड़ जोड़कर मदारी वाला तमाशा करना और पब्लिक में स्वयं को उनके ज्यादा निकट दिखाने के लिए बेसिरपैर की बयानबाजी करना और तमाम ऐसी कल्याणकारी घोषणाएं करना, जो कभी अमल में नहीं लाई जाएंगी, उनका शगल बन चुका हैै ।
किसी भी दुखद घटना पर राज्य के मुखिया का घटनास्थल पर पहुंचकर घोषणाएं करना, जांच बैठाना, मुआवजे देना और तबादले करना तो समझ आता है लेकिन तमाम राजनीतिक पार्र्टियों के ब्रांडेड नेताओं का हादसा स्थल के चक्कर लगाने से समझ नहीं आता कि ये लोग सिवाय बयानबाजी व शुष्क सांत्वना के पीडितों के लिए क्या कर सकते है? हां! इन राजनेताओं के अपनी पार्टी के समर्थकों के साथ पीडि़तों के बीच पहुंचने से उनके उस दुखद अहसास की पुन: पुन: पुनरावृत्ति अवश्य हुई है, जिसे वे भुलाना चाहते हैं। ऊपर से उनकी तरह-तरह की बयानबाजियों ने पीडि़तों को यही अहसास कराया है कि वे कुछ खो चुके हैं जो कभी नहीं पाया जा सकेगा। क्या संवेदनाओं के साथ यह राजनीतिक छेड़छाड़ किसी सूरत में उचित ठहराई जा सकती है?
इन राजनेताओं ने इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या किया है? मेरठ में विक्टोरिया पार्क हादसा हुआ, उपहार सिनेमा आग की भेंंट चढ़ा, डबवाली में स्कूली बच्चे जल मरे, कुंभकोणम में हृदय विदारक दृश्य था, अभी कुछ दिन पहले दिल्ली के कीर्ति नगर व पांडव नगर में अग्रिकांड हुआ, इन नेताओं ने क्या किया? हां! जितने भी हादसों के वायस हैैंं, उन्हें इन्हीं राजनेताओं ने संरक्षण देने का काम जरूर किया है। आपने देखा होगा कि जब जब चुनाव पास आते हैं गरीबों की झुग्गियों में आग जरूर लगती है क्यों कि यदि नेता आग नहीं लगवाएगा तो राजनीति कैसे करेगा?
यदि ये राजनेता चाहते तो अपनी सरकारों के रहते वे ऐसे प्रयास जरूर करते कि इस प्रकार के अग्रिकांड न हों, वे कानून बनाकर उसका सख्ती से पालन कराने के लिए निश्चित जिम्मेदारी सौंपते, जिससे उनकी रचनात्मक भूमिका प्रकट होती, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि फिर उन्हें राजनीति करने का अवसर कहां मिलता!

बुधवार, मार्च 03, 2010

प्राण शक्ति का स्रोत है प्राणायाम

प्राण शरीर और मन के बीच का सेतू है। प्राण केवल मात्र सांस का आना जाना नहीं, बल्कि यह उस तत्व को इंगित करता है जो इस वायु और श्वास के माध्यम से जीवन के चक्र को निरंतर चलायमान रखती है। प्राणों का महिमामडंन करते हुए वेद कहते हैं। ओं भूरग्नये स्वाहा, ओं प्राणाय स्वाहा, ओं व्यानाय स्वाहा ओं स्वरादित्याय स्वाहा, ओं प्राणापानव्यानेभ्य: स्वाहा। यज्ञ करते समय प्राणों के लिए आहुतियां दी जाती है। आधुनिकतम तकनीकों से आज प्राणों के मनुष्य जीवन में औचित्य का सफल निरूपण किया जा सकता है। वैसे भी मनुष्य बिना भोजन और पानी के कुछ समय बिता सकता है लेकिन प्राणों के अभाव में मनुष्य कुछ क्षणों में ही बैचैन हो उठता है। मनुष्य के भावों और संवेगों का प्राणों के साथ अभिन्न संबंध है। क्रोध आने या ज्यादा हंसी आने पर सांस फूल जाती है। उदासी और दुख की घडिय़ों में सांसों की गति बहुत धीमी हो जाती है। इसी बात को ध्यान में रखकर जब भारत के मनीषियों ने प्रयोग किये तो पाया कि सांस का संबध मनुष्य जीवन में बहुत गहराई से जुड़ा है यही नही सांस को नियंत्रण में किया जाए तो आश्चर्यजनक परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। जैसे जैसे योगी और ऋषि प्रयोग करते गए प्राण सेतू से जुड़े रहस्य उनके सामने खुलते गए इससे जन्म हुआ अष्टांग योग के प्रमुख अंग प्राणायाम का। प्राणायाम, प्राणों के आयाम का अभ्यास है। इसकी उपलब्धि तब होती है जब साधक श्वास प्रश्वास पर मन एकाग्र करके प्राण के साथ उद्गीथ की उपासना करने में सफलता हासिल करता है। साधारण मनुष्य भी प्रतिदिन यदि कुछ मिनटों तक केवल अपनी सांसों पर ही मन एकाग्र करे तो कई शारीरिक और मानसिक दुर्बलताओं पर आसानी से विजय पा सकता है। प्राणायाम, चंचल मन को बस में करने में ब्रह्मïास्त्र सा कार्य करता है। भगवद्गीता में प्रभु कहते हैं कि नासिका छिद्रों द्वारा ही संचार करने वाले प्राण और अपान दोनों वायुओं को समान करके जो मननशील योगी मन इन्द्रियों एवं बुद्धि को वश में करनेवाला सतत मोक्ष मार्ग में तत्पर इच्छा भय एवं क्रोध से रहित होता है वह सदा मुक्त ही है। योगदर्शन में अनेक प्रकार के प्राणायाम का वर्णन मिलता है। जिन के करने से प्राणी को अकूत लाभ मिलते हैं। प्राण के मुख्यत: तीन आयाम हैं सांस लेना, सांस रोकना और सांस छोडऩा इसके अतिरिक्त दो सूक्ष्म आयाम और भी है जिनका संबध सांस रोकने के बाद छोडने और सांस पूरी तरह छोडऩे के बाद फिर से ग्रहण करने से है। इसी प्रकार प्राणायाम की अनेक विधियों में तीन प्रमुख और सहज क्रियाएं हैं। पहले गहरा सांस खींच कर यथाशक्ति रोकना, जब श्वास रोके रखना कठिन हो जाए तो धीमें से श्वास छोड़ देना। दूसरे में श्वास को छोड़कर फेफड़े पूरी तरह खाली कर लिए जाते हैं फिर सांस को रोक कर रखा जाता है। जब घबराहट महसूस हो या सांस रोके रखना कठिन लगने लगे तब धीरे धीरे गहरा श्वास खींच कर फिर से यही प्रक्रिया दोहराई जाती है। तीसरी विधि में सांस को एक दम से जहां के तहां रोक लिया जाता है । सांस छोड़ते समय या सांस लेते समय यथाशक्ति बीच में ही सांस रोककर यह क्रिया की जाती है। प्राणायाम की उपरोक्त पहली विधि से शरीर को जीवनदायिनी प्राण शक्ति मिलती है। जिससे जीवन में उत्साह और शरीर में कांति उत्पन्न होती है। प्राणायाम की दूसरी विधि से शरीर के अंदर की मलिनताओं का नाश होता है परिणाम स्वरूप शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति में भारी वृद्धि होती है। जीवन में आरोग्यता और शरीर में पुष्टता का समावेश होता है। प्राणायाम की तीसरी विधि से प्राणों पर नियत्रंण संभव होता जिससे चंचल मन की चंचलता स्थिरता में बदल जाती है। इसके अतिरिक्त भी प्राणायाम की कई विधियां योगीजनों ने विकसित की हैं। साधारण जीवन में मनुष्य प्राणों के प्रति अधिक जागरूक नही ंरहता है, जिसके कारण उसे कई रोगों और संवेगों का सामना करना पड़ता है। साधारणतया हम सांस उपरी तौर पर लेते रहते हैं, पूरा सांस न छोडऩे के कारण हमारे फेफड़ों में बासी वायु दबी रह जाती है। इस वायु में जहरीले तत्व इक_ïा होते रहते हैं यदि हम गहराई से सांस ले और सांस छोड़ें तो ये जहरीले तत्व श्वास के माध्यम से ही शरीर के बाहर चले जांएगे, लेकिन अज्ञानता और आलस्यवश हम सांस यंत्रवत सांस लेते रहते हैं। यदि हम प्रतिदिन केवल थोड़ा सा समय ही सांसों को ठीक तरीके से छोडऩे और लेने में उपयोग करें तो कई भयानक रोगों और मानसिक संवेगों से मुक्ति मिलना तय है।