जग मन भोर भई!
अस्त भए नभ के सब तारे!
पूरब से सूरज निकला रे!
चंद्रप्रभा भी गई!!
रुत प्रभात अरुणिमा छाई!
कुमुद लता सस्मित हर्षाई!
फिर हुई प्रीत नई!
जग मन भोर भाई!!
कोकिल कूके नाचे मोरा!
पुहपन पे मंडराए भोंरा!
रश्मि विशाल भई!
जग मन भोर भई!!
जब समीर चले पुरवाई!
हरियाली शाखें लहराई!
कोकिल कूकत जस शहनाई!
रुत बसंती चहुँ दिशी छाई!
रति फिर रित भई!!
चन्द्र शेखर शास्त्री
9312535000
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