शनिवार, सितंबर 04, 2010

अवमूल्यन का शिकार इलेक्ट्रानिक मीडिया

अवमूल्यन का शिकार इलेक्ट्रानिक मीडिया


संचार तकनीकी के विकास युग में, पत्रकारिता क्षेत्र में जब टीवी चैनल आये, तो लगा था कि अब एक नये युग की शुरुआत होगी, जो देश को वह तस्वीर दिखाएगा, जिसे प्रिंट मीडिया नहीं दिखा पाता है, लेकिन अल्प समय में ही इस अवधारणा को झटका लगा और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी टीआरपी के चक्कर में पत्रकारिता की गरिमा तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इनके विवेक और बुद्धि की बानगी और टीआरपी के लिए पत्रकारिता के साथ किए गए बलात्कार की सीमा देखिए कि बिहार में जिन पुलिस अधिकारियों के अपहरण नक्सलवादियों ने कर लिए हैं, उनके बीवी बच्चों की संवेदनाओं से बार बार खेलते हुए उन्हें टीवी पर रिपीट दर रिपीट कर रहे हैं। वे बच्चों से बार बार पूछ रहे हैं कि आपके पिता को कौन किडनेप करके ले गया है। क्या दस बीस करोड़ खर्च करके इन मदारियों को यह अधिकार मिल जाता है कि ये किसी की संवेदनाओं तक का खयाल न करें?आप एक चार पन्नों का दैनिक या  साप्ताहिक या वार्षिक समाचार पत्र निकालना चाहते हैं तो सरकार का पूरा अमला उसकी जांच में ऐसे जुट जाता है, जैसे बेचारा अखबार निकालने वाला साक्षात ओसामा बिन लादेन हो? लेकिन ये इलेक्ट्रानिक चैनल वाले  अपनी मरजी से कुछ भी दिखाएं, कुछ भी चलाएं, सरकार जैसे इनके हाथ की कठपुतली बन गई लगती है। अन्यथा  क्या कारण है कि इन पर सरकारी कानून की जगह कहा जाता है कि अपनी नियमावली स्वयं बना लें और उसका पालन करें। जबकि प्रिंट मीडिया पर हजारों पाबंदियां  हैं। यहां तक कि सरकार का एक साधारण सिपाही यदि न चाहे तो डिक्लेरेशन फाइल तक नहीं हो सकता। कितना हास्यास्पद और शर्मनाक होता है, जब बलात्कार की शिकार महिला से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की महिला पत्रकार यह पूछती है कि आपको कैसा लग रहा है? भूकंप आया हुआ हो, तबाही मची हो, आदमी मलवे में दबा पड़ा हो, तो छिद्र ढूंढकर ये पूछते हैं कि 'आप कैसा फील कर रहे हैं? अश्लीलता फैलाती और स्त्री लज्जा को बेचने वाली राखी सावंत इनकी रोल मॉडल हो जाती है और उन्हें अश्लीलता परोसते हुए यह ध्यान कतई नहीं रहता कि टीवी पर उनके समाचार भारतीय परिवार एक साथ बैठकर देख रहा होगा। ये निर्लज्जता के नये अलंबरदार किसी प्रोफेसर के घर में घुसकर उसकी निजता भंगकर देश को दिखाने से भी गुरेज नहीं करते, ये मोहल्लों तक में नैतिकता की अनैतिक ठेकेदारी करने में शान समझते हैं, जबकि इन टीवी चैनलों की महिला कर्मियों के प्रति इनका व्यवहार इसकी चुगली करता है। टीवी ने पत्रकारिता को फिल्मों से ज्यादा ग्लैमरस बना दिया, इस कारण दिल्ली सहित देश के सभी बड़े शहरों में पत्रकारिता से स्नातक परीक्षा पास करने वाली युवा पीढ़ी, खासकर युवतियां हजार रुपये और मुफ्त में भी काम कर रही हैं, ऊपर से अपने सीनियर द्वारा शोषण की शिकार भी हैं। क्या इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपने गिरेबान में झांकना नहीं चाहिए?

पत्रकार को जिम्मेदार नागरिक मानकर समाज उसे मान देता आया है, समाज को उससे अपेक्षाएं होती हैं कि वह भ्रष्टाचार की परतें खोले, देश के विकास में सहयोग करे, गंभीरता के आधार पर समाचार उपलब्ध कराए, कुरीतियों से समाज को मुक्त करने का प्रयास करे। लेकिन कुछ बड़े घरानों के पत्रकारों और टीवी चैनलों ने समाज में विद्रूपता और अश्लीलता फैलाने का ठेका ले लिया है। गांभीर्य और गरिमा को उन्होंने खूंटी पर टांग दिया है। ये केवल व्यावसायिकता की भाषा समझते हैं। संचार संस्कृति का जन मानस पर क्या असर पड़ेगा, इन्हें इससे कोई सरोकार नहीं। ये अपराध समाचार का वीभत्स वर्णन भी कम से कम कपड़े पहने सैक्सी लुक वाली एंकर से कराते हैं। क्या यही पत्रकारिता है कि किसी के दुख को भी सैक्सी अंदाज में व्यक्त किया जाए?

इस सबके लिए कहीं न कहीं हमारा कानून भी दोषी है, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अखबारों-पत्रिकाओं के शीर्षक पंजीकरण के लिए तो देश भर में अनेक कार्यालय खोल रखे हैं, उनकी भाषा, चित्र और संपादकीय नीति पर भी पैनी नजर रखी जाती है, यहां तक कि वे कितना छपते हैं, किस क्षेत्र में बिकते हैं, इस पर भी मंत्रालय की पूर्ण दृष्टि होती है। परंतु टीवी चैनल पर समाचार कार्यक्रम का शीर्षक क्या हो, उसके कार्यक्षेत्र, कार्यक्रम की रूपरेखा पर मंत्रालय का कोई नियंत्रण नहीं है, यही कारण है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दिशाहीनता की ओर बढ़ रहा है।

अब ऐसे में जब प्रसारण बिल की बात आ रही है तो इलेक्ट्रॉनिक मीडियाई पत्रकार चिल्लपौं मचा रहे हैं, जबकि इस सबके लिए जिम्मेदार वही लोग हैं। वे संचार साधनों का खुला दुरुपयोग कर रहे हैं, वे समाज की गरिमा को नष्ट कर रहे हैं, वे भस्मासुर के नये अवतार हैं, जो किसी को भी जलील कर सकता है। निश्चित रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की हदें तय होनी ही चाहिए,क्योंकि किसी भी सभ्य समाज में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से असभ्यता का दौर आसानी से शुरू हो सकता है, जिसके लिए दोषारोपण से नहीं, व्यवस्था से चलना होगा।

मीडिया देश के लिए है, न कि देश मीडिया के लिए। अत: देश काल और परिस्थिति को ध्यान में रख कर ही समाचारों का चयन और प्रसारण होना चाहिए। सनसनी फैलाने से या अफवाहों को बल देने से देश का कोई हित नहीं होता, इसलिए पत्रकारों को इस घातक प्रवृति से दूर रहना चाहिए, वर्ना चतुर्थ स्तंभ का भरभरा कर गिर जाना भी एक दिन समाचार हो जाएगा और पत्रकार की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ जाएगी। ...और तब जो हालात होंगे उसके लिए पत्रकार खुद जिम्मेदार होंगे।

मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी का एक शेर तो सबको याद होगा कि-

खींचो न कमानों को न तलवार निकालो।


जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो॥

लेकिन आज हालात बदल रहे हैं। अब ऐसा कहने वाले और करने वाले दोनों ही गायब है। तब यही शेर सही लगता है। कि -

अब तो दरवाजे से अपने नाम की तख्ती उतार।


लफ्ज नंगे हो गये, शोहरत भी गाली हो गई।।

-चंद्र शेखर शास्त्री

गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

भारत की विफल राजनीति का नतीजा है नेपाल का वर्तमान

भारत की विफल राजनीति का नतीजा है नेपाल का वर्तमान


जिस देश में राजा को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था, जिसमें दैवीय शक्तियों का वास माना जाता था, जहां 90 फीसदी आबादी धार्मिक हिंदुओं की है, फिर यकायक ऐसा क्या हुआ कि तथाकथित लोकतंत्र के नाम पर नेपाल नरेश के सारे अधिकार छीन लिए गए, देश से हिंदू राष्ट्र की अवधारणा मिटाने पर मुहर लगा दी गई और विश्व मे एकमात्र हिंदू राष्ट्र के रूप में प्रसिद्ध रॉयल नेपाल से रॉयल शब्द भी नौच लिया गया और उसे नया आवरण दिया गया धर्मनिरपेक्ष नेपाल...।

दरअसल यह एक दिन का घटनाक्रम नहीं है,इसके पीछे एक दशक से भी ज्यादा की योजनाएं हैं जो क्रियान्वित होते-होते अब मूर्त रूप में सामने आई हैं। इसमें माओवादियों को सामने रखकर चीन ने जहां कूटनीतिक सफलता पाई है,वहीं यह भारतीय विदेश नीति की विफलता का प्रतीक भी है।

भारत की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए हिमालय की तराई में बसे नेपाल का महत्व किसी भी सूरत में कम नहीं किया जा सकता, वहां किसकी सरकार है,उसकी क्या नीतियां ,किस रूप में क्रियान्वित होती हैं,से भारत प्रभावित होता है। यदि वहां मित्र सरकार है तो ठीक वरना वह हमारे दुश्मनों के लिए एक स्टेशन के रूप में, उनका अड्डा हो सकता है, जो हमारे लिए खतरनाक होगा।

नेपाल शुरू से ही चीन की निगाह में है, लेकिन पिछले एक दशक से भी अधिक समय से वहां माओवादियों की गतिविधियां दिखाई पड़ रही हैं, वर्ष 2001 में तत्कालीन नेपाल नरेश वीरेन्द्र व महारानी की हत्या कर युवराज दीपेन्द्र द्वारा आत्महत्या करने के पीछे का षडयंत्र आज तक रहस्य बना हुआ है। कुछ विश्लेषकों की राय में यह 1996 से नेपाल में अपनी गहरी पैठ बनाने वाले माओवादियों को मिली पहली सफलता थी, क्योंकि बाद में नेपाल नरेश बने ज्ञानेन्द्र माओवादियों के लिए तटस्थ माने जाते थे। चीन चाहता है कि नेपाल कम्यूनिस्टों के देश के रूप में जाना जाए और वह भारत में अपनी गतिविधियां अधिक सक्रिय रूप से क्रियान्वित कर सके। इसी लिए माओवादी वहां राजशाही से सत्ता छीन कर कम्यूनिस्ट गणतंत्र स्थापित करना चाहते थे। अब नेपाल से हिन्दूराष्ट्र की अवधारणा मिटाना और राजशाही को समाप्त करने में उसने सफलता पा ली है।

यह सब उस समय हुआ है जब भारत के दक्षिण,पूर्वोत्तर और उत्तर क्षेत्र के डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्य माओवादियों के निशाने पर हैं और वे नेपाल मे बैठकर भारत में अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। दरअसल नेपाल माओवादियों का हब बन गया है, जहां से वे भारत को नियंत्रित करने के अपने स्वप्र को साकार करना चाहते हैं।

-चंद्र शेखर शास्त्री

Blogvani.com

शनिवार, अप्रैल 03, 2010

संन्यासी का असली कार्य संसार को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है - स्वामी कल्याण देव


संन्यासी का असली कार्य संसार को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है - स्वामी कल्याण देव


बात पांच साल पुरानी है। मैं और मेरे कवि मित्र श्री अवधेश शर्मा, जिन्होंने स्वामी कल्याणदेव जी की प्रेरणा से मेरे संपादन में रामचरित मानस की शैली में चौपाई सोरठा आदि छंद में पश्चिमी उत्तरप्रदेश की भाषा में प्रथम बार गीता का काव्यानुवाद किया था, पुस्तक के प्रकाशन के बाद उसकी प्रति स्वामी जी को भेंट करने गए। मुजफ्फरनगर पहुंचने से पहले ही हमें पता चल गया था कि स्वामी जी भोपा रोड़ पर गांधी पॉलीटेक्निक स्थित अपनी कुटिया पर हैं तो मन में दर्शन की इच्छा वेगवती नदी की तरह उफान पर आने लगी। याद आने लगा कि लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व जब श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर मोदीनगर में मेरे पिताश्री की कृपा से स्वामी जी के मुझे प्रथम दर्शन हुए थे तो मैं उनके विचार चिंतन में किस प्रकार खो गया था। स्वामी जी मंदिर के अतिथिगृह में पधारे हुए थे और निरंतर कर्मलीन रहते थे। जब मैंने उनके चरण स्पर्श किए तो आशीर्वाद देते हुए उन्होंने बैठने के लिए कहा। मैं उनके चरणों में बैठ गया। उन्होंने प्लेट में पहले से रखे केले उठाए और छीलकर मुझे दिए। संत के हाथों से प्रसाद पाकर मैं धन्य हो गया। इसके बाद उन्होंने अपने कागजों से कुछ पोस्ट कार्ड निकाले और मुझे देते हुए कहा कि मैं बोल रहा हूं और तुम पत्र लिखो। मैंने स्वामी जी के कथ्य को लिपि दी और उन्हें दे दिए। स्वामी जी ने शिक्षा के समुचित प्रबंध के लिए किन्हीं विद्यालयों के लिए शिक्षा अधिकारियों को ये पत्र लिखवाए थे।

संतों की जीवन शैली से तो मैं गुरुकुलीय शिक्षा के कारण परिचित था, मैने नए नए कौपीन बांधे और उत्तरीय धारण किए अनेक संतों के दर्शन किए थे, लेकिन मैं पहली बार किसी ऐसे विरक्त संत के समीप था जो स्वयं तो फटे चिथड़े धारण किए हुए था लेकिन संसार के सौंदर्य के लिए अति आवश्यक शिक्षा का प्रचार प्रसार कर वास्तव में अज्ञान से मुक्त करना चाहता था, जिसमें करोड़ों रुपए की लागत आती है। इसलिए मैं मुग्ध हुए बिना न रह सका। वहां बैठे हुए मुझे अभी एक घंटा के लगभग हो गया था, लेकिन स्वामी जी लगातार अनेक अधिकारियों को पत्र लिखवाए जा रहे थे। मैं पत्र लिखने के साथ साथ विचार कर रहा था कि यदि सभी संत विश्व कल्याण की इसी भावना से ओतप्रोत हो जाएं तो भारत को पुन: विश्वगुरु बनने से कौन रोक सकता है। ...आखिर पत्र लेखन का सिलसिला बंद हुआ तो मैंने स्वामी जी से पूछा कि भारत के अनेक संत हिमालय पर तपस्या कर रहे है और जप तप से विश्व कल्याण को अग्रसर हैं ऐसे में आप जप तप छोडकर शिक्षा को इतना महत्व क्यों देते हैं। मैं गुरुकुल से आया ब्रह्मïचारी था, मेरे सरल स्वभाव से किए गए प्रश्न पर स्वामी जी ने मुझे समझाते हुए कहा कि संन्यासी का असली कार्य संसार को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है और सही मार्ग शिक्षा का है। यदि शिक्षा उचित होगी तो व्यक्ति कभी भी समाज का अहित नहीं करेगा और यदि शिक्षा में दोष हुआ तो वह कभी समाज का भला नहीं करेगा। इसलिए सबसे पहले मानव का शिक्षित होना जरूरी है। केवल उपदेश देने से संसार का भला नहीं हो सकता, इसके लिए कर्म करना होगा, शिक्षा का विस्तार करना होगा, यही मानवता की सच्ची सेवा है। मैं तो तमाम संतों और धर्माचार्यों से भी यही कहता हूं कि आश्रम छोड़ो और गांव गांव पैदल घूमकर संस्कृति का प्रचार करो शिक्षा का स्तर उठाओ, यही तपष्चर्या का जीवन है, यदि संस्कृति बचानी है तो शिक्षा के स्वरूप को बचाओ।

गाड़ी गांधी पॉलीटेक्निक पहुंच चुकी थी, अवधेश जी ने जैसे सोते से जगाया कि चलो स्वामी जी की कुटिया आ गई है तो चक्षुरुन्मीलित करते हुए मैं कार से उतरा। कुटिया के दाईं ओर जाल लगा एक कमरा सा बना था जहां आगंतुकों के लिए कुर्सियां रखी हुईं थीं। एक ओर मेज लगी हुई थी जिसके पीछे लगी कुर्सी पर शांति की प्रतिमूर्ति एक संत विराजमान थे। जो दर्शनीय थे, अपने स्नेहिल स्वभाव से ओतप्रोत किसी पुस्तक में मग्न थे। जब हम वहां पहुंचे तो उन्होंने सत्कार के साथ स्थान ग्रहण करने को कहा और जल आदि व्यवस्था के बाद अपने हाथों से छीलकर केले प्रसाद में दिए और आने का कारण पूछा। यह परम पूज्य स्वामी ओमानन्द ब्रह़मचारी जी से हमारा प्रथम परिचय था।

स्वामी ओमानन्द जी को हमने अपने आने का उद्देश्य बताते हुए निवेदन किया कि स्वामी कल्याणदेव जी की प्रेरणा से प्रकाशित नव अनूदित गीता की प्रति स्वामी जी को भेंट करनी है। तो स्वामी ओमानन्द जी ने बताया कि स्वामी जी रुग्ण हैं।... और वे हमसे बैठने को कहकर स्वामी जी के पास गए। थोड़ी ही देर में हमें बुला लिया गया। स्वामी जी रोगशैय्या पर थे। परंतु हमें देखकर उन्होंने स्वामी ओमानन्द ब्रह्मïचारी जी से बैठाने को कहा और गीता की प्रति माथे से लगाते हुए हमें आशीर्वाद दिया। उनके बैठने के इशारा करने पर हम वहीं बैठ गए। स्वामी जी स्पष्टï नहीं बोल पा रहे थे, उन्होंने स्वामी ओमानन्द जी को कुछ इशारा किया तो स्वामी ओमानन्द जी ने मोदक प्रसाद का डिब्बा स्वामी जी के हाथों में दे दिया। स्वामी जी ने अपने हाथों से हमें प्रसाद दिया और उनके आशीर्वाद से हम कृतार्थ हो गए।

घर घर में शिक्षा का दीपक जलाने वाले शिक्षाऋषि परम पूज्य स्वामी कल्याणदेव जी महाराज भौतिक शरीर को त्यागकर सूक्ष्म रूप में हमारे बीच विद्यमान हैं और उनके बताए मार्ग पर उनके परम शिष्य स्वामी ओमानन्द ब्रह्मïचारी जी महाराज के कुशल निर्देशन में शिक्षा की मशाल अहर्निश जलती रहेगी।

-चंद्र शेखर शास्त्री

सोने की स्याही से चित्र बनाता है कला साधक कन्हाई परिवार

भगवान कृष्ण के साक्षात दर्शन

होते हैं कन्हाई चित्रों में






सोने की स्याही से चित्र बनाता है कला


साधक कन्हाई परिवार


बहत्तर वर्षीय श्री कन्हाई जी आज भारत में चित्रकला के शिखर पुरुष हैं। सन्ï 2000 में भारत के राष्टï्रपति द्वारा उन्हें पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया गया था और 4 साल बाद ही उनके बड़े पुत्र कृष्ण को भी पद्मश्री अलंकरण से भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया जा चुका। एक ही परिवार में पिता-पुत्र को मिलने वाला यह सम्मान अकेली मिसाल है।

कन्हाई जी के पूर्वज राजस्थान के मेड़ता से कलकत्ता आकर बस गए थे। वहीं इनके मन में चित्रकला के प्रति रुचि उत्पन्न हुई और गुरू नंदलाल जैन के सानिध्य में कला की बारीकियां सीखी, अपने समय के महान चित्रकार श्री नंदलाल जैन ने अपने चित्रों से मध्य प्रदेश के राजगढ़ के महाराजा चक्रधर सिंह के दरबार में चार चांद लगा दिए थे । 19 वर्ष की आयु में आपका विवाह हो गया और गृहस्थ की जिम्मेदारियों ने रोजगार की तलाश शुरू करा दी। आप मुंबई पहुंचे और प्रसिद्ध निदेशक गुरूदत्त से मुलाकात हुई। गुरूदत्त ने इन्हें अपनी फिल्म गोरी का कला निदेशक बना दिया, लेकिन फिल्मनगरी इन्हें अधिक दिनों तक बांधकर नहीं रख सकी। अचानक बम्बई छोड़ कोलकाता आ गए। जब वहां भी मन नहीं लगा तो वे कई स्थानों पर धूमते हुए वृंदावन आ गए। वृंदावन आने का कारण कन्हाई जी इस प्रकार बताते हैं--

दरअसल, जब मैं दर दर की खाक छानते हुए परेशान हो रहा था तभी एक रात सोते वक्त मुझे सपना दिखाई पड़ा। सपने में भगवान कृष्ण ने जैसे मुझे आदेश सा दिया। वृंदावन जाओ, सब ठीक हो जाएगा। जब कन्हाई जी वृंदावन आए तो सबसे पहले बांके बिहारी मंदिर पहुंचकर भगवान के चरण स्पर्श किए और फिर यह उनका रोज का नियम बन गया। सवेरे मंदिर में पहुंचकर घंटों भगवान की मूर्ति को निहारते रहते फिर चित्र बनाते और एक दिन ऐसा आया जब उनकी पेंटिग्स की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। आज उनके चित्र भारत में ही नहीं, अमेरिका, बिट्रेन, जर्मनी और सारी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।

प्राचीन काल में चित्र बनाने में सोने की स्याही की प्रयोग होता था, लेकिन अंग्रेजी के जमाने में इस कला को संरक्षण नहीं मिला तो वह लुप्तप्राय: हो गई। कन्हाई ने उस कला को पुनर्जीवित किया और स्वर्ण स्याही तथा नग के प्रयोग से कन्हाई कला को नया रूप दिया। श्री कन्हाई जी ने अपनी ब्रुश और रंगों से सभी देवी-देवताओं के रूप कैनवास पर उतारे हैं, लेकिन राधा-कृष्ण के बनाए चित्र अनुपम और अद्वितीय हैं। देखने में भव्य में चित्र शिल्प और भक्तिभाव की सुंदर अभिव्यक्ति है। कृष्ण लीला के चित्र ही क्यों बनाते हैं इस पर कन्हाई परिवार का कहना है कि श्री कृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण हैं। जितनी सुंदरता, विविधता और आकर्षण कान्हा की लीलाओं में हैं, उतनी शायद ही कहीं हो।

आप राजा रवि वर्मा से काफी प्रेरित रहे हैं। स्कूल ऑफ गोल्ड पेंटिग्स की स्थापना के बाद चित्रकार कन्हाई भगवान श्रीकृष्ण के सजीव लगती पेंटिंग्स के लिए सुविख्यात हो गए और उनके आब्सट्रैक्ट पेंटिंग्स शैली के चित्रों ने उन्हें विश्व में एक महान चित्रकार के रूप में पहचान दिलाई। उन्हें विश्वास है कि भगवान श्रीकृष्ण के चित्र बनाना ही उनकी पूजा करना है। कन्हाई की कला दैविक अनुभूति के प्रति उसकी प्रगाढ़ समझ और तूलिका पर पकड़ को प्रदर्शित करती है। उनकी चित्रकारी इतनी संगीतमय है कि उन्हें रंगों की झिलमिलाती कविता कहा गया है। अपने कला की सृजनात्मक उत्पत्ति के कारण वह एक अंतरराष्टï्रीय व्यक्तित्व बन गए हैं। अपनी कला साधना को निरंतर बनाए रखने के लिए उन्होंने 1956-57 के आस पास वृंदावन में एक आर्ट स्टूडियो खोला। सृजन के उनके अनोखे अंदाज को बाद में कन्हाई स्कूल ऑफ पेंटिंग्स के नाम से जाने लगा।

चित्रकार कृष्ण कन्हाई

चित्रकार कन्हाई के वरिष्ठï सुपुत्र कृष्ण कन्हाई ने भी अपने पिता और गुरू की छत्रछाया में गोल्ड पेटिंग की परंपरागत कला में महारत हासिल की है। फिर भी वे अपनी वंशानुगत परंपरा से बंधे नहीं रहे और इस कला को ज्यादा से ज्यादा संपन्न बनाने के लिए अपना अलग योगदान दिया। उन्होंने और अधिक दर्शनीय, लुभावने और आध्यात्मिक रूप से संपन्न कैनवास सृजित किए, जिसमें ग्रामीण ब्रज की उनकी चित्रकारी को अंतरराष्टï्रीय ख्याति प्राप्त हुई। उन्होंने राष्टï्रीय और अंतरराष्टï्रीय नेताओं के कई पोट्रेट भी बनाए। हमें कन्हाई जी और उनके दोनों पुत्रों पर गर्व है।

-चंद्र शेखर शास्त्री

शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

निशाने पर एन सी आर

निशाने पर एन सी आर


दिल्ली में पुलिस का दबाव और उत्तर प्रदेश व हरियाणा के सीमावर्ती इलाकों में बिना हील हुज्जत के, बिना जांच के किरायेदारी पर मिलते मकानों की सुविधा ने आतंकवादियों को राïष्टï्रीय राजधानी क्षेत्र में फैलने का अवसर दे दिया है। यही कारण है कि आतंकवादी, गाजियाबाद ,मेरठ, लोनी, पिलखुवा, मसूरी, सिकंदराबाद, बल्लभगढ़ और आसपास के इलाकों को अपने लिए अतिसुरक्षित मानने लगे हैं क्योंकि यहां न तो पुलिस को आतंकवादियों से लडऩे का प्रशिक्षण प्राप्त है और न ही मकान मालिक किराएदारों की पुलिस जांच कराने की जरूरत समझते हैं।

राष्टï्रीय राजधानी क्षेत्र उस लिहाज से भी सुरक्षित माना जाता है कि यहां आतंकवादियों को अपना नेटवर्क फैलाने के लिए स्थानीय लोग भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ मंडल में तो आलम ये हैै कि पाकिस्तान से लोग पर्यटक वीजा पर आते हैं और इस क्षेत्र में आकर अपना पासपोर्ट फाड़ देते हैं कोई किसी का भाई हो जाता है और कोई बहनोई । गृह मंत्रालय में ऐसे अनेकों मामले जांच के लिए लंबित पड़े हैं, लेकिन बाहरी आदमी का आसानी से पता नहीं चल पाता, इन्हीं लोगों में कोई लश्करे तैय्यबा का प्रशिक्षित आतंकवादी होता है और कोई सिमी के लिए काम करने लगता है गाजियाबाद का मोदीनगर व मुरादनगर भी इससे अछूता नहीं हैै।

गाजियाबाद में तो आतंकवादियों के अनेक ठिकाने हैं, जिसका पता इस बात से चलता है कि इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी 814 को छुड़ाने के लिए कंधार ले जाकर रिहा कराए गए शेख उमर सईद, जिसने 1995 मे 3 विदेशी पर्यटकों का अपहरण भी किया था, को एसटीएफ ने गाजियाबाद के मसूरी मेें उसके ठिकाने से गिरफ्तार किया था ।

यह इलाका लाखों के इनामी कुख्यात आतंकवादी अब्दुल करीब टुंडा के प्रभाव का है, टुंडा पिलखुवा का रहने वाला है। इसके अलावा पिछले माह उत्तर प्रदेश पुलिस स्पेशल टास्कफोर्स के हाथों मारे गए सलीम सालार उर्फ डाक्टर को भी पुलिस ने गाजियाबाद के लोनी में ही दबोचा था। अभी कछ दिनों पहले पुलिस के जवाहर लाल स्टेडियम के पास हुई मुठभेड़ में मारा गया पाकिस्तानी खुंखार आतंकवादी अबू हम्जा बल्लभगढ़ की जगदीश कालोनी में राजेश नाम से छात्र बनकर रह रहा था, बाद में उसके कमरे से पुलिस ने कई एके 56 राइफलें सैकड़ों कारतूस हथगोले,आरडीएक्स और बम बनाने के सामान सहित सेटेलाइट फोन व कम्प्यूटर बरामद किया।

लश्कर व सिमी के आतंकवादी छात्र या सामान्य नागरिक की तरह रहते हैं उनके हावभाव से कोई भी नहीं कह सकता कि वे आतंकवादी होंगे,लेकिन जब वे वारदात कर जाते हैं तो पता चलता है कि पड़ोस में एक आतंकवादी रहता था।

ये आतंकवादी आईटी तकनीक के भी जानकार होते हैं। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मे 25 अप्रैल 1977 को प्रो. अमानुल्लाह सिद्ïदीकी द्वारा स्थापित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का नेटवर्क उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल,असम सहित दिल्ली तक फै ला हुआ है, उसके 400 पूर्ण कालिक सदस्य हैं और 20 हजार से अधिक लोग इसके गतिविधियों मे लिप्त हैं और 27 सिंतबर 2001 से आतंकवादी गतिविधियों के कारण प्रतिबंधित है। इन्हीं आतंकवादियों के कारनामे अब छोटे-छोटे कस्बों में भी दिखाई देने लगे हैं। मोदी नगर में बस में आरडीएक्स विस्फोट, मुरादनगर में सहारनपुर अंबाला पैसेंजर में बम विस्फोट, दुहाई में डीटीसी बस में बम विस्फ ोट आदि अनेक घटनाएं हैैं जो इस इलाके में आतंकवादियों के ठिकाने होने की पुष्टि करती हैं।

-चंद्र शेखर शास्त्री

दूध के नाम पर...

दूध के नाम पर...
हालांकि यह सिद्ध कर पाना बहुत कठिन कार्य है कि कौन सा दूध असली है और कौन-सा नकली! वैज्ञानिक इस अनुसंधान में लगे हुए हैं, जिससे जल्द ही मिलावट का पता चल सकेगा। आज जिस पद्धति से नमूनों की जांच हो रही है, उसमें सिर्फ जानवरों की चर्बी और सोडियम सल्फेट के अत्यधिक मिश्रण वाला दूध ही पकड़ में आ रहा हैै। इस कारण बहुत से ऐसे दुग्ध विक्रेता, जिनके पास न तो अपनी गाय या भैंस ही है और न ही वे किसी पशु पालक से दूध खरीदते हंै, फिर भी दूध बेचने का उनका धंधा खूब फल-फूल रहा है। इस प्रकार के दूध वालों की पकड़ ऊपर तक है। वे खाद्य निरीक्षकों की मार्फत अथवा सीधे स्तर पर अधिकारियों से संपर्क बनाकर रखते हैं और सेंपल भरे जाने के बाद भी धड़ल्ले से नकली दूध बेच रहे हैं।
देश में बड़े स्तर पर नकली दूध का निर्माण हो रहा है और शहरों में यह बाहर से भी लाकर बेचा जा रहा है। एक दूध विक्रेता ने बहुत विश्वास दिलाने के बाद नकली दूध बनाने का अपना देसी फ ार्मूला हमें बताया। जिसे हम पाठकों और अधिकारियों के लाभार्थ यहां प्रकाशित कर रहे हैं। नकली दूध में सात वस्तुओं का समावेश किया जाता है। जिनमें दो कैमिकल मिश्रण मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त घातक हैं- नकली दूध में लिक्विड डिटरजेंट, जो कपड़े धोने के काम आता है, सफेद दाने वाला यूरिया, जो बिना नमी के फ सल पर डाल दिए जाए तो फ सल को जला डालता हैै, टॉफी में डाले जाने वाला ग्लूकोज, पाम ऑयल, अरण्डी का तेल और पानी तथा लगभग 30-40 प्रतिशत सपरेटा दूध। इन्हें एक निश्चित अनुपात में मिलाकर फेंटा जाता है और यह नकली दूध तैयार किया जाता है जिससे मानव की प्रतिरोधक शक्ति का नाश हो रहा है।

इस दूध की पहचान के बारे में पूछने पर उक्त विक्रेता ने बताया कि इस दूध का पनीर नहीं बन सकता, दही बस उतनी ही मात्रा मेें जमेगी जितनी मात्रा में सप्रेटा मिला हुआ है बाकी पानी रह जायेगा। यह दूध असली दूध में 6-7 घंटे ज्यादा चलता है जबकि असली दूध जल्द फट जाता है।
बताया जाता है कि दूध को ज्यादा समय तक रखने और उसे खट्टïा होने से बचाने के लिए दूध का कारोबार करने वाले व्यापारी और मिल्क प्लांटों के मालिक इसमें कास्टिक सोडा, चूना, कास्टिक पोटाश हाइड्रोजन पैरोक्साइड फारमिलिन बेंजोयिक एसिड, सैलसिलिक एसिड और यूरिया तक मिला रहे हैं। इन रसायनों के प्रयोग से दूध तो जरूर कुछ समय के लिए खट्ï्ïटा होने से बच जाता है लेकिन इसमें मिले हए रासायनिक पदार्थ मानव शरीर में जहर घोलकर उन्हें मौत के मुंह में धकेल रहे हैं। अर्सेनिक युक्त दूध का लगातार सेवन करने वालों को तो पैप्टिक अल्सर, जिगर व आंतों का कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं। उल्लेखनीय है कि दूध में आर्सेनिक कास्टिक सोडा के मिलाने से आता है।
कास्टिक सोडा एक निष्क्रिय कारक रासायनिक यौगिक सोडियम हाइड्रोक्साइड होता है। इसमें आसैर्निक आक्साइड जैसा घातक जहर, सीसा निकिल और कई अन्य अघुलनशील धातुओं का समावेश रहता है। अशुद्घ रूप से प्राप्त कास्टिक सोड़े में इनकी मात्रा और भी बढ़ जाती है। दूध में मिलाये जा रहे अन्य निष्क्रिय कारकों की श्रेणी में कास्टिक पोटाश चूना और हाइड्रोजन पैराक्साइड जैसे रसायन भी मानव प्रयोग के लिए घातक होते हैं।
इसी तरह फार्मिलिन परीक्षक श्रेणी का एक रासायनिक यौगिक फारमेल्डिहाइड है जो जीवाणु एवं बैक्टीरिया को दूध में पनपने से रोकता है। इस रसायन के मिल जाने से दूध एकाध दिन ही नहीं, वर्षों तक खïट्टा नहïीं होता। लेकिन यह दूध मानव प्रयोग के योग्य नहीं है।
-चंद्र शेखर शास्त्री

मंगलवार, मार्च 30, 2010

दिल्ली मांगे पानी सरकार कहे कहानी

दिल्ली मांगे पानी सरकार कहे कहानी

राजनीतिक स्वार्थ, जल बोर्ड की लापरवाही और जलमाफिया को संरक्षण के चलते इन दिनों देश की धड़कन दिल्ली में कृत्रिम रूप से जल संकट पैदा किया जा रहा हैै। इसके बावजूद दिल्ली सरकार जलापूर्ति के लिए आए दिन केंद्र के सामने रोना रोती रहती है और उत्तर प्रदेश से और जलापूर्ति के लिए दबाव बनाने का हरसंभव प्रयास करती रहती हैै। जबकि दिल्ली सरकार व दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़ों की जबानी जलापूर्ति और मांग की जो कहानी सामने आती है उसके तथ्य चौंकाने वाले हैं। यदि इन तथ्यों पर गौर करें तो स्पष्टï होता है कि दिल्ली सरकार पानी मामले पर भ्रमपूर्ण स्थिति पैदा कर अपनी कारगुजारियों पर लीपापोती ही नहीं कर रही, अपितु दिल्ली की जनता के विश्वास पर भी कुठाराघात कर रही हैै।
दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि जलबोर्ड लगभग 690 एमजीडी जल शोधन करता है और 100 से 150 एमजीडी भूजल भी उठाता है अर्थात्ï 790 से 840 एमजीडी जल बोर्ड के पास उपलब्ध है। और भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार दिल्ली में प्रति व्यक्ति 170 लीटर की जल की प्रतिदिन आवश्यकता है, तदनुसार दिल्ली की डेढ़ करोड़ आबादी को 570 एम जीडी पानी मिलने से ही उसकी प्यास बुझ जाती हैै। जबकि दिल्ली के पास 840 एमजीडी जल उपलब्ध है यानि 270 एमजीडी पानी ज्यादा है, फिर दिल्ली प्यासी क्यों हैं।
दिल्ली की जलीय वितरण व्यवस्था चरमराने के बाद 1998 में सरकार ने दिल्ली जल बोर्ड का गठन किया था, जिसका उद्देश्य दिल्ली को स्वच्छ एवं यथावश्यक पेयजल उपलब्ध कराने की व्यवस्था करना था, परंतु बारह वर्ष बीतने पर भी समस्या घटने के स्थान पर बढ़ती जा रही है और अतिरिक्त मात्रा में जल उपलब्ध होने के बावजूद आपूर्ति का 40 प्रतिशत पानी रिसाव के कारण नालों की भेंंट चढ़ जाता है। दिल्ली जलबोर्ड के अधिकारी रिसाव के कारण जलसंकट नहीं मानते, लेकिन स्वीकार करते हैं कि प्रतिमाह पाइप लाइनों में होने वाले रिसाव से 92 से 120 एमजीडी पानी नालों में बह जाता है, यह जलबोर्ड की लापरवाही का नमूना ही कि सारी मशक्कतों के बाद जलबोर्ड केवल 43 एमजीडी रिसाव ही रोक पाता हैै, यानि रिसाव का 60 प्रतिशत से ज्यादा पानी देखती आंखों जाया हो रहा हैै। बावजूद 840 एमजीडी जल उपलब्धता के दिल्ली जल बोर्ड का तुर्रा है कि उसे दिल्ली की प्यास बुझाने के लिए 850 एमजीडी जल चाहिए और उसके पास 210 एमजीडी जल कम हैै, दिल्ली की जनता के साथ बहुत बड़ा धोखा हैै।
केवल लापरवाही होती तो भी काम चल जाता। दिल्ली जलबोर्ड के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से जल माफिया को संरक्षण देकर जलबोर्ड के संयंत्रों से आ रही मैन पाइप लाइन पर हाईड्रेन्ट लगाकर दस रुपये प्रति 20 लीटर में बोतलें भरी जा रही हैं और उन्हें लगभग 40 हजार रिक्शाओं के माध्यम से दिल्ली की विभिन्न पॉश कालोनियों मेंं 20 रुपये प्रति 20 लीटर की दर से बचा जा रहा है। इसके अलावा लगभग 700 टैैंकरों को 100 रुपये प्रति टैंकर पानी अवैध रूप से दिया जाता है जो 500 से 1000 रुपये प्रति टैंकर की दर पर बिकता हैै। दिल्ली में ये प्राइवेट टैंकर 4 से 5 बार रोजाना अवैध जल विक्रय करते हैैं और 4 से 8 लाख रुपये प्रतिदिन उगाही करते हैं, यानि प्यासी दिल्ली से लगभग 2 करोड़ रुपये प्रतिमाह बनाते हैं जो बिना अधिकारियों की मिलीभगत के संभव ही नहीं हैै। दक्षिणी दिल्ली के तुगलकाबाद, बदरपुर, महरौली, कालकाजी, अम्बेडकरनगर, साकेत गंगपुरा, ओखला, डीडीए फ्लैट, जसोला, सरिता विहार और हरकेश नगर आदि क्षेत्रों में अवैध जल टैंकर घरों की टंकी में पानी चढ़ाने के 50 से 100 रुपये अतिरिक्त भी वसूल कर लेते हैं। यह खेल कोई एक दिन का नहीं हैै, दिल्ली में रोजाना या नजारे देखे जा सकते हैं। लापरवाही, जलमाफिया से मिलकर कालाबाजारी के अलावा जल बोर्ड की पाइप लाइनों को सीवर लाइनों व नालियों के साथ बिछाने के कारण रिसाव वाले स्थानों से जल के साथ मल व गंदगी भी सप्लाई हो रहा है, जिससे कुछ स्थानों पर बदबू वाला गंदा पानी पहुंच रहा हैै।
जलबोर्ड के अधिकारियों की बोतलबंद पानी के निर्माताओं से मिलीभगत के कारण लगातार शिकायतों के बाद भी आपूर्ति जल में गंदगी का मिलना नहीं रोका जा रहा हैै। जिसके चलते एक बड़े वर्ग का विश्वास दिल्ली जलबोर्ड के जल की शुद्धता से उठ गया है और वे बोतल बंद पानी पर विश्वास करने को मजबूर हुए। इसके अलावा तमाम होटलों से लेकर अस्पतालों तक लगभग दस लाख बोतल पानी बिकता है, जिसके लिए दिल्ली वासी लगभग एक करोड़ रुपये प्रतिदिन खर्च करते हैं। दिल्ली जलबोर्ड के मुताबिक बोतल बंद पानी के लगभग 5 दर्जन ब्रांड बाजार में हैं। इनके अलावा करीब दो लाख रेहडियां भी दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर पचास पैसे प्रति गिलास की दर से पानी बेच रही हैं, अमूमन 1 रेहडी में 100 लीट पानी आता है। इस प्रकार लगभग 4 करोड़ रुपये का पानी दिल्ली में प्रतिदिन रेहडी पर बिक जाता हैै।

पानी की राजनीतिक अखाड़ेबाजी

कहा जाता हैै कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा। लेकिन देश के विभिन्न राज्यों में सत्ता पाने के लिए पानी का सहारा लेना नई बात नहीं है। कावेरी जल विवाद हो या गंगा जल विवाद, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, जैसे उत्तरी राज्यों से लेकर तमिलनाडु और कर्नाटक तक में पानी चुनावी मुद्दा बन जाता है, यही नहीं, वहां पानी के कारण दंगों जैसे हालात भी पैदा हो जाते हैं, दिल्ली को पानी दिये जाने पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान आंदोलन करने लगता हैै। दिल्ली हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच है इसलिए पानी की आपूर्ति भी इन्हीं राज्यों से आने वाली नदियों के माध्यम से की जाती है।
चूंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के खेत गंगा के पानी से ही सींचे जाते हैं ऐसे में दिल्ली को पानी दिये जाने से उनकी सिंचाई पर फर्क पड़ता है। जब पहले से ही मुरादनगर से गंगा वाटर की सप्लाई दिल्ली को हो रही हो, अतिरिक्त आपूर्ति यहां के किसानों को नागवार गुजरती है। उनका मानना है कि दिल्ली को और पानी देना अपनी फसल को सुखाना है। जबकि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कहना हैै कि उसे उत्तर प्रदेश से 300 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए क्योंकि यूपी सरकार ने ऐसा वादा किया था, उधर, उत्तर प्रदेश सरकार ऐसे किसी वादे से इनकार करती है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश का किसान दिल्ली को और जल देने के पक्ष में इसलिए भी नहीं है क्योंकि दिल्ली सरकार ने फ्रांस की कंपनी स्वेज डेग्रामाउंट से अनुबंध किया है, जो सोनिया विहार संयंत्र से दिल्ली को जलापूर्ति करेगी। यह विश्व की बड़ी जल विक्रेता कंपनियों में गिनी जाती है, क्योंकि यह विदेशी कंपनी गंगा जल से निजी मुनाफा कमाएगी इसलिए भी किसान जलापूर्ति के विरोध में खड़े हैं। दिल्ली सरकार का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गंग नहर किनारे ट्यूबवैल लगाकर जल देने की बात भी किसानों के गले नहीं उतर रही है।

असमान वितरण बना संकट

जल बोर्ड की अदूरदर्शिता व कुप्रबंधन के चलते कई स्थानों पर मुख्य पाइप लाइन से ही डायरेक्ट कनेक्शन दे रखे हैं जिस कारण दक्षिणी दिल्ली तक पहुंचते-पहुंचते पानी का दबाव कम हो जाता है, जिससे वहां लोगों को रोटियां सूखी रहती हैं। इसके अलावा असामाय जल वितरण के चलते भी जलापूर्ति का संकट रहता हैै ।
एनडीएम सीके क्षेत्र में जहां मात्र 2 प्रतिशत आबादी ही रहती है, जल बोर्ड 400 लीटर प्रति व्यक्ति के अनुपात से भी ज्यादा आपूर्ति की जाती है और महरौली जैसे इलाके में मात्र 30 लीटर प्रति व्यक्ति के 50 लीटर प्रति व्यक्ति सप्लाई होती है और कैैंट को 350 लीटर। इस असमान आपूर्ति के चलते जलापूर्ति का आधारभूत ढांचा गड़बड़ा गया है और दिल्ली प्यासी मर रही हैै।

मांग और आपूर्ति पर एक नजर

  • वर्ष 2001
    मांग: 750 एमजीडी
    आपूर्ति : 585 एमजीडी
    जनसंख्या 1.31 करोड़

  • वर्ष 2006
    मांग : 850 एमजीडी
    आपूर्ति : 690 एमजीडी
    जनसंख्या 1.61

  • वर्ष 2011
    मांग : 1140 एमजीडी
    आपूर्ति : ?
    जनसंख्या 2.10 करोड़

  • वर्ष 2021
    मांग : 1180 एमजीडी
    आपूर्ति : ?
    जनसंख्या 2.30 करोड़

  • जल शोधन संयंत्र : क्षमता व उत्पादन
    संयंत्र क्षमता (एमजीडी) उत्पादन (एमजीडी) स्रोत
    हैदरपुर 200 220 पश्चिमी यमुना नहर
    चंद्रावल 90 98 यमुना
    वजीराबाद 120 134 यमुना
    भागीरथी 100 120 गंगनहर/यमुना
    नांगलोई 40 25 पश्चिमी यमुना नहर
    ओखला 12 3 यमुना किनार के वर्षा कुएं
    बवाना 90 - मुनक नहर
    सोनिया विहार 140 - गंग नहर
    ओखला - - मुनक नहर
    मुनक नहर - - मुनक नहर

  • भूजल 60 150 3 लाख 60 हजार नलकूप

  • जलबोर्ड का बेड़ा
    माउंटेड वाटर टैंक 303
    ट्राली टैंकर 249
    टैैक्टर टैैंकर 46
    ट्रक टैंकर 17
    ठेकेदारों के टैंकर 700

  • वितरण की स्थिति
    क्षेत्र प्रतिव्यक्ति आपूर्ति
    बाहरी दिल्ली 50-120 लीटर
    पश्चिमी दिल्ली 150-200 लीटर
    दिल्ली कैंट 200-350 लीटर
    दक्षिण -पश्चिम 30-100 लीटर
    दक्षिण दिल्ली 80-140 लीटर
    पूर्वी दिल्ली 120-150 लीटर
    एनडीएमसी 200-400 लीटर
    सिविल लाइन 250-350 लीटर
    करोलबाग 125-320 लीटर
    सभी स्रोत : दिल्ली जल बोर्र्ड
    -चंद्र शेखर शास्त्री

गुरुवार, मार्च 04, 2010

संवेदनहीन सांत्वना

वे लाशों पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आते...
जब भी कोई बड़ा हादसा होता है तो तमाम राजनेता वहां संवेदना व्यक्त करनेे पहुंच जाते हैं, पीडि़तों के बीच पहुंच कर वे संवेदनाएं कम, बयानबाजी ज्यादा करते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब वे लाशों पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आते। इन राजनेताओं के आने से हादसे में मारे गये या घायलों के परिजनों को सांत्वना तो क्या मिलती, ये संवेदनाहीनता का शिकार और हो जाते हैं। क्योंकि जो पुलिस-प्रशासन या सरकारी अमला, स्वयंसेवी संगठन व चिकित्सक पीडि़तों की मदद करते, वे इन 'वी आई पी आकाओंÓ की खैर-मकदम में जुट जाते हैं। ... और ऐसे में सांत्वना का संवेदनाहरण हो जाता हैै।
हादसे के बाद इन नेताओं की भीड़ उस हादसे से भी बड़ी हो जाती है, जिसका दंश हादसे के शिकार लोग झेल रहे होते हैं क्योंकि ये सत्ताधारी या सत्तालोलुप राजनेता, जो कभी न कभी कुर्सी पर विराजमान रहे हैं या वर्तमान में सरकार में हैं, 'अवसादÓ को 'अवसरÓ में बदलने के लिए हादसे को भी लाटरी के टिकट में तब्दील करने की पुरजोर कोशिश करते हैं। इनके लिए मातम भी कुर्सी पाने का खेल है, जनप्रतिनिधित्व की आड़ में हादसे को भुनाने के लिए सांत्वना के बजाए, राहत अफ़्जाई की कारगुजारियों पर निगाह रखने की बजाए, हाहाकार में भीड़ जोड़कर मदारी वाला तमाशा करना और पब्लिक में स्वयं को उनके ज्यादा निकट दिखाने के लिए बेसिरपैर की बयानबाजी करना और तमाम ऐसी कल्याणकारी घोषणाएं करना, जो कभी अमल में नहीं लाई जाएंगी, उनका शगल बन चुका हैै ।
किसी भी दुखद घटना पर राज्य के मुखिया का घटनास्थल पर पहुंचकर घोषणाएं करना, जांच बैठाना, मुआवजे देना और तबादले करना तो समझ आता है लेकिन तमाम राजनीतिक पार्र्टियों के ब्रांडेड नेताओं का हादसा स्थल के चक्कर लगाने से समझ नहीं आता कि ये लोग सिवाय बयानबाजी व शुष्क सांत्वना के पीडितों के लिए क्या कर सकते है? हां! इन राजनेताओं के अपनी पार्टी के समर्थकों के साथ पीडि़तों के बीच पहुंचने से उनके उस दुखद अहसास की पुन: पुन: पुनरावृत्ति अवश्य हुई है, जिसे वे भुलाना चाहते हैं। ऊपर से उनकी तरह-तरह की बयानबाजियों ने पीडि़तों को यही अहसास कराया है कि वे कुछ खो चुके हैं जो कभी नहीं पाया जा सकेगा। क्या संवेदनाओं के साथ यह राजनीतिक छेड़छाड़ किसी सूरत में उचित ठहराई जा सकती है?
इन राजनेताओं ने इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या किया है? मेरठ में विक्टोरिया पार्क हादसा हुआ, उपहार सिनेमा आग की भेंंट चढ़ा, डबवाली में स्कूली बच्चे जल मरे, कुंभकोणम में हृदय विदारक दृश्य था, अभी कुछ दिन पहले दिल्ली के कीर्ति नगर व पांडव नगर में अग्रिकांड हुआ, इन नेताओं ने क्या किया? हां! जितने भी हादसों के वायस हैैंं, उन्हें इन्हीं राजनेताओं ने संरक्षण देने का काम जरूर किया है। आपने देखा होगा कि जब जब चुनाव पास आते हैं गरीबों की झुग्गियों में आग जरूर लगती है क्यों कि यदि नेता आग नहीं लगवाएगा तो राजनीति कैसे करेगा?
यदि ये राजनेता चाहते तो अपनी सरकारों के रहते वे ऐसे प्रयास जरूर करते कि इस प्रकार के अग्रिकांड न हों, वे कानून बनाकर उसका सख्ती से पालन कराने के लिए निश्चित जिम्मेदारी सौंपते, जिससे उनकी रचनात्मक भूमिका प्रकट होती, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि फिर उन्हें राजनीति करने का अवसर कहां मिलता!

बुधवार, मार्च 03, 2010

प्राण शक्ति का स्रोत है प्राणायाम

प्राण शरीर और मन के बीच का सेतू है। प्राण केवल मात्र सांस का आना जाना नहीं, बल्कि यह उस तत्व को इंगित करता है जो इस वायु और श्वास के माध्यम से जीवन के चक्र को निरंतर चलायमान रखती है। प्राणों का महिमामडंन करते हुए वेद कहते हैं। ओं भूरग्नये स्वाहा, ओं प्राणाय स्वाहा, ओं व्यानाय स्वाहा ओं स्वरादित्याय स्वाहा, ओं प्राणापानव्यानेभ्य: स्वाहा। यज्ञ करते समय प्राणों के लिए आहुतियां दी जाती है। आधुनिकतम तकनीकों से आज प्राणों के मनुष्य जीवन में औचित्य का सफल निरूपण किया जा सकता है। वैसे भी मनुष्य बिना भोजन और पानी के कुछ समय बिता सकता है लेकिन प्राणों के अभाव में मनुष्य कुछ क्षणों में ही बैचैन हो उठता है। मनुष्य के भावों और संवेगों का प्राणों के साथ अभिन्न संबंध है। क्रोध आने या ज्यादा हंसी आने पर सांस फूल जाती है। उदासी और दुख की घडिय़ों में सांसों की गति बहुत धीमी हो जाती है। इसी बात को ध्यान में रखकर जब भारत के मनीषियों ने प्रयोग किये तो पाया कि सांस का संबध मनुष्य जीवन में बहुत गहराई से जुड़ा है यही नही सांस को नियंत्रण में किया जाए तो आश्चर्यजनक परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। जैसे जैसे योगी और ऋषि प्रयोग करते गए प्राण सेतू से जुड़े रहस्य उनके सामने खुलते गए इससे जन्म हुआ अष्टांग योग के प्रमुख अंग प्राणायाम का। प्राणायाम, प्राणों के आयाम का अभ्यास है। इसकी उपलब्धि तब होती है जब साधक श्वास प्रश्वास पर मन एकाग्र करके प्राण के साथ उद्गीथ की उपासना करने में सफलता हासिल करता है। साधारण मनुष्य भी प्रतिदिन यदि कुछ मिनटों तक केवल अपनी सांसों पर ही मन एकाग्र करे तो कई शारीरिक और मानसिक दुर्बलताओं पर आसानी से विजय पा सकता है। प्राणायाम, चंचल मन को बस में करने में ब्रह्मïास्त्र सा कार्य करता है। भगवद्गीता में प्रभु कहते हैं कि नासिका छिद्रों द्वारा ही संचार करने वाले प्राण और अपान दोनों वायुओं को समान करके जो मननशील योगी मन इन्द्रियों एवं बुद्धि को वश में करनेवाला सतत मोक्ष मार्ग में तत्पर इच्छा भय एवं क्रोध से रहित होता है वह सदा मुक्त ही है। योगदर्शन में अनेक प्रकार के प्राणायाम का वर्णन मिलता है। जिन के करने से प्राणी को अकूत लाभ मिलते हैं। प्राण के मुख्यत: तीन आयाम हैं सांस लेना, सांस रोकना और सांस छोडऩा इसके अतिरिक्त दो सूक्ष्म आयाम और भी है जिनका संबध सांस रोकने के बाद छोडने और सांस पूरी तरह छोडऩे के बाद फिर से ग्रहण करने से है। इसी प्रकार प्राणायाम की अनेक विधियों में तीन प्रमुख और सहज क्रियाएं हैं। पहले गहरा सांस खींच कर यथाशक्ति रोकना, जब श्वास रोके रखना कठिन हो जाए तो धीमें से श्वास छोड़ देना। दूसरे में श्वास को छोड़कर फेफड़े पूरी तरह खाली कर लिए जाते हैं फिर सांस को रोक कर रखा जाता है। जब घबराहट महसूस हो या सांस रोके रखना कठिन लगने लगे तब धीरे धीरे गहरा श्वास खींच कर फिर से यही प्रक्रिया दोहराई जाती है। तीसरी विधि में सांस को एक दम से जहां के तहां रोक लिया जाता है । सांस छोड़ते समय या सांस लेते समय यथाशक्ति बीच में ही सांस रोककर यह क्रिया की जाती है। प्राणायाम की उपरोक्त पहली विधि से शरीर को जीवनदायिनी प्राण शक्ति मिलती है। जिससे जीवन में उत्साह और शरीर में कांति उत्पन्न होती है। प्राणायाम की दूसरी विधि से शरीर के अंदर की मलिनताओं का नाश होता है परिणाम स्वरूप शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति में भारी वृद्धि होती है। जीवन में आरोग्यता और शरीर में पुष्टता का समावेश होता है। प्राणायाम की तीसरी विधि से प्राणों पर नियत्रंण संभव होता जिससे चंचल मन की चंचलता स्थिरता में बदल जाती है। इसके अतिरिक्त भी प्राणायाम की कई विधियां योगीजनों ने विकसित की हैं। साधारण जीवन में मनुष्य प्राणों के प्रति अधिक जागरूक नही ंरहता है, जिसके कारण उसे कई रोगों और संवेगों का सामना करना पड़ता है। साधारणतया हम सांस उपरी तौर पर लेते रहते हैं, पूरा सांस न छोडऩे के कारण हमारे फेफड़ों में बासी वायु दबी रह जाती है। इस वायु में जहरीले तत्व इक_ïा होते रहते हैं यदि हम गहराई से सांस ले और सांस छोड़ें तो ये जहरीले तत्व श्वास के माध्यम से ही शरीर के बाहर चले जांएगे, लेकिन अज्ञानता और आलस्यवश हम सांस यंत्रवत सांस लेते रहते हैं। यदि हम प्रतिदिन केवल थोड़ा सा समय ही सांसों को ठीक तरीके से छोडऩे और लेने में उपयोग करें तो कई भयानक रोगों और मानसिक संवेगों से मुक्ति मिलना तय है।

गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010

ग्लोबल गुरू : स्वामी रामदेव

पेटूपन से ग्रस्त लोगों के लिए स्वामी रामदेव के प्रयोग 'रामबाणÓ हैैं
बिना किसी औषधि के, मात्र फूंक मारने यानि श्वास लेने-छोडऩे के विशेष प्रकार (प्राणायाम) के माध्यम एवं उठने-बैठने-लेटने की कुछ सरल मुद्राओं (योग आसन) के द्वारा अस्थमा, पार्किंसन, ल्यूकेमिया, थैलिसीमिया, स्तन कैंसर, गर्भग्रीवा कैंसर, आंत्र कैंसर, अर्श, संधिवात, आर्थराइटिस, गोएट्ï्ïस, ब्रेन ट्ï्ïयूमर, अंधत्व व मोतियाबिंद जैसे अनेक गंभीर व घातक रोगों को जड़ से मिटा देने वाले स्वामी रामदेव आजकल देश-धर्म-जाति की सभी सीमाओं को लांघते हुए ग्लोबल हो गये हैं। वे शरीर के समस्त रोगों का उपचार मात्र योगासन व प्राणायाम से करते हैं साथ ही अति विकट परिस्थिति में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग का भी परामर्श देते हैं।
भागमभाग की जीवन शैली, अनियमित खानपान, अनियमित दिनचर्या, असंयमित जीवनचर्या ने आज मानव को रोगी बना दिया है, जीभ के स्वाद और पेटूपन से ग्रस्त लोगों के लिए स्वामी रामदेव के प्रयोग 'रामबाणÓ की तरह अचूक हैं।
स्वामी रामदेव के कार्यक्रम प्रतिदिन लगभग सौ देशों में देखे जाते हैं। उनको टीवी पर देखकर योगासन प्राणायाम करके विश्व में करोड़ों लोग रोगमुक्त हो रहेे हैैं, अकेले अमेरिका में स्वामी रामेदव के एक करोड़ से अधिक अनुयायी हैं वे भारत में बालीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से भी अधिक लोकप्रिय हैं, पाकिस्तान में वे सर्वाधिक लोकप्रिय भारतीय हैं। उनके शिष्यों में विश्व के अनेक शासन प्रमुख, उद्योगपतियों, चिकित्सकों, शिक्षाविदों सहित लगभग सारा अवाम है, जो उनके कार्यक्रम देखता है या शिविर 'अटेंडÓ करता है। योग क्रांति के इस पुरोधा के अनुयायियों की संख्या विश्वभर में लगातार बढ रही हैै। उन्होंने पश्चिम को भी सुखी, तनाव रहित और स्वस्थ जीवन के लिए भारत के प्राचीन योग से जोड़ दिया हैै।
वाशिंगटन से लंदन तक दरी बिछाकर सुखासन में रेचक प्राणायाम कर उड्डिड्डयान बंध लगाए अथवा अनुलोम विलोम व कपालभाति करते हुए पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, ब्रिटेन व फ्रांस आदि में करोड़ों लोग स्वामी रामदेव के योगासन से अपने दिन की शुरुआत करते हैं।
अमेरिका से प्रकाशित 'योग जर्नलÓ के अनुसार आज अमेरिकी करीब 2.95 अरब डालर यानि लगभग 15 हजार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष योग व उससे जुड़ी वस्तुओं सामग्री पर व्यय करते हैं। एक सर्वे के अनुसार इस समय अमेरिका में एक करोड़ 65 लाख लोग योगासन करते हैं जो वर्ष 2002 के मुकाबले 43 प्रतिशत अधिक हैै।
विश्व भर के लोगों ने माना है कि स्वास्थ्य के लिए जिम जाना एक थका देने वाला व्यायाम है जबकि योगासन-प्राणायाम अल्प समय में जीवनशक्ति से भरपूर सरल प्रक्रिया है। भारत में हजारों वर्ष पूर्व विकसित इस पद्धति को भूल भारतीय जिम की ओर आकर्षित हो गये थे, जो स्वामी रामदेव के प्रयासों से पुन: योग की ओर झुके हैं और जिम के दुष्प्रभावों से मुक्त हुए हैं। स्वामी रामदेव बताते हैं कि योग मात्र व आसन व प्राणायम का नाम नहीं है बल्कि एक संपूर्ण जीवन पद्धति है, प्राण, ऊर्जा, श्वास व पूरे शरीर को साधने और चित्तवृत्तियों को रोकने का नाम योग है। जो अनुशासित जीवन की आधारशिला रखता हैै।
स्वामी रामदेव ने योग की दुरुह जटिलताओं से सरल और वर्तमान जीवनशैली के लिए आवश्यक आसन-प्राणायामों को सभी नागरिकों के लिए उन्हीं की भाषा में अभिव्यक्त किया है।
निश्चय ही उन्होंने मनुस्मृति के मनु कथन को सत्य कर दिखाया है कि भारत विश्व गुरू है और सभी को अपने अपने चरित्र की शिक्षा इससे लेनी चाहिए।
एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मन:।
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्ï पृथिव्यां सर्व मानवा:।।

मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

जग मन भोर भई!


जग मन भोर भई!

अस्त भए नभ के सब तारे!

पूरब से सूरज निकला रे!

चंद्रप्रभा भी गई!!

रुत प्रभात अरुणिमा छाई!

कुमुद लता सस्मित हर्षाई!

फिर हुई प्रीत नई!

जग मन भोर भाई!!

कोकिल कूके नाचे मोरा!

पुहपन पे मंडराए भोंरा!

रश्मि विशाल भई!

जग मन भोर भई!!

जब समीर चले पुरवाई!

हरियाली शाखें लहराई!

कोकिल कूकत जस शहनाई!

रुत बसंती चहुँ दिशी छाई!

रति फिर रित भई!!



चन्द्र शेखर शास्त्री

9312535000