शनिवार, अप्रैल 03, 2010

सोने की स्याही से चित्र बनाता है कला साधक कन्हाई परिवार

भगवान कृष्ण के साक्षात दर्शन

होते हैं कन्हाई चित्रों में






सोने की स्याही से चित्र बनाता है कला


साधक कन्हाई परिवार


बहत्तर वर्षीय श्री कन्हाई जी आज भारत में चित्रकला के शिखर पुरुष हैं। सन्ï 2000 में भारत के राष्टï्रपति द्वारा उन्हें पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया गया था और 4 साल बाद ही उनके बड़े पुत्र कृष्ण को भी पद्मश्री अलंकरण से भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया जा चुका। एक ही परिवार में पिता-पुत्र को मिलने वाला यह सम्मान अकेली मिसाल है।

कन्हाई जी के पूर्वज राजस्थान के मेड़ता से कलकत्ता आकर बस गए थे। वहीं इनके मन में चित्रकला के प्रति रुचि उत्पन्न हुई और गुरू नंदलाल जैन के सानिध्य में कला की बारीकियां सीखी, अपने समय के महान चित्रकार श्री नंदलाल जैन ने अपने चित्रों से मध्य प्रदेश के राजगढ़ के महाराजा चक्रधर सिंह के दरबार में चार चांद लगा दिए थे । 19 वर्ष की आयु में आपका विवाह हो गया और गृहस्थ की जिम्मेदारियों ने रोजगार की तलाश शुरू करा दी। आप मुंबई पहुंचे और प्रसिद्ध निदेशक गुरूदत्त से मुलाकात हुई। गुरूदत्त ने इन्हें अपनी फिल्म गोरी का कला निदेशक बना दिया, लेकिन फिल्मनगरी इन्हें अधिक दिनों तक बांधकर नहीं रख सकी। अचानक बम्बई छोड़ कोलकाता आ गए। जब वहां भी मन नहीं लगा तो वे कई स्थानों पर धूमते हुए वृंदावन आ गए। वृंदावन आने का कारण कन्हाई जी इस प्रकार बताते हैं--

दरअसल, जब मैं दर दर की खाक छानते हुए परेशान हो रहा था तभी एक रात सोते वक्त मुझे सपना दिखाई पड़ा। सपने में भगवान कृष्ण ने जैसे मुझे आदेश सा दिया। वृंदावन जाओ, सब ठीक हो जाएगा। जब कन्हाई जी वृंदावन आए तो सबसे पहले बांके बिहारी मंदिर पहुंचकर भगवान के चरण स्पर्श किए और फिर यह उनका रोज का नियम बन गया। सवेरे मंदिर में पहुंचकर घंटों भगवान की मूर्ति को निहारते रहते फिर चित्र बनाते और एक दिन ऐसा आया जब उनकी पेंटिग्स की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। आज उनके चित्र भारत में ही नहीं, अमेरिका, बिट्रेन, जर्मनी और सारी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।

प्राचीन काल में चित्र बनाने में सोने की स्याही की प्रयोग होता था, लेकिन अंग्रेजी के जमाने में इस कला को संरक्षण नहीं मिला तो वह लुप्तप्राय: हो गई। कन्हाई ने उस कला को पुनर्जीवित किया और स्वर्ण स्याही तथा नग के प्रयोग से कन्हाई कला को नया रूप दिया। श्री कन्हाई जी ने अपनी ब्रुश और रंगों से सभी देवी-देवताओं के रूप कैनवास पर उतारे हैं, लेकिन राधा-कृष्ण के बनाए चित्र अनुपम और अद्वितीय हैं। देखने में भव्य में चित्र शिल्प और भक्तिभाव की सुंदर अभिव्यक्ति है। कृष्ण लीला के चित्र ही क्यों बनाते हैं इस पर कन्हाई परिवार का कहना है कि श्री कृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण हैं। जितनी सुंदरता, विविधता और आकर्षण कान्हा की लीलाओं में हैं, उतनी शायद ही कहीं हो।

आप राजा रवि वर्मा से काफी प्रेरित रहे हैं। स्कूल ऑफ गोल्ड पेंटिग्स की स्थापना के बाद चित्रकार कन्हाई भगवान श्रीकृष्ण के सजीव लगती पेंटिंग्स के लिए सुविख्यात हो गए और उनके आब्सट्रैक्ट पेंटिंग्स शैली के चित्रों ने उन्हें विश्व में एक महान चित्रकार के रूप में पहचान दिलाई। उन्हें विश्वास है कि भगवान श्रीकृष्ण के चित्र बनाना ही उनकी पूजा करना है। कन्हाई की कला दैविक अनुभूति के प्रति उसकी प्रगाढ़ समझ और तूलिका पर पकड़ को प्रदर्शित करती है। उनकी चित्रकारी इतनी संगीतमय है कि उन्हें रंगों की झिलमिलाती कविता कहा गया है। अपने कला की सृजनात्मक उत्पत्ति के कारण वह एक अंतरराष्टï्रीय व्यक्तित्व बन गए हैं। अपनी कला साधना को निरंतर बनाए रखने के लिए उन्होंने 1956-57 के आस पास वृंदावन में एक आर्ट स्टूडियो खोला। सृजन के उनके अनोखे अंदाज को बाद में कन्हाई स्कूल ऑफ पेंटिंग्स के नाम से जाने लगा।

चित्रकार कृष्ण कन्हाई

चित्रकार कन्हाई के वरिष्ठï सुपुत्र कृष्ण कन्हाई ने भी अपने पिता और गुरू की छत्रछाया में गोल्ड पेटिंग की परंपरागत कला में महारत हासिल की है। फिर भी वे अपनी वंशानुगत परंपरा से बंधे नहीं रहे और इस कला को ज्यादा से ज्यादा संपन्न बनाने के लिए अपना अलग योगदान दिया। उन्होंने और अधिक दर्शनीय, लुभावने और आध्यात्मिक रूप से संपन्न कैनवास सृजित किए, जिसमें ग्रामीण ब्रज की उनकी चित्रकारी को अंतरराष्टï्रीय ख्याति प्राप्त हुई। उन्होंने राष्टï्रीय और अंतरराष्टï्रीय नेताओं के कई पोट्रेट भी बनाए। हमें कन्हाई जी और उनके दोनों पुत्रों पर गर्व है।

-चंद्र शेखर शास्त्री

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