शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

दूध के नाम पर...

दूध के नाम पर...
हालांकि यह सिद्ध कर पाना बहुत कठिन कार्य है कि कौन सा दूध असली है और कौन-सा नकली! वैज्ञानिक इस अनुसंधान में लगे हुए हैं, जिससे जल्द ही मिलावट का पता चल सकेगा। आज जिस पद्धति से नमूनों की जांच हो रही है, उसमें सिर्फ जानवरों की चर्बी और सोडियम सल्फेट के अत्यधिक मिश्रण वाला दूध ही पकड़ में आ रहा हैै। इस कारण बहुत से ऐसे दुग्ध विक्रेता, जिनके पास न तो अपनी गाय या भैंस ही है और न ही वे किसी पशु पालक से दूध खरीदते हंै, फिर भी दूध बेचने का उनका धंधा खूब फल-फूल रहा है। इस प्रकार के दूध वालों की पकड़ ऊपर तक है। वे खाद्य निरीक्षकों की मार्फत अथवा सीधे स्तर पर अधिकारियों से संपर्क बनाकर रखते हैं और सेंपल भरे जाने के बाद भी धड़ल्ले से नकली दूध बेच रहे हैं।
देश में बड़े स्तर पर नकली दूध का निर्माण हो रहा है और शहरों में यह बाहर से भी लाकर बेचा जा रहा है। एक दूध विक्रेता ने बहुत विश्वास दिलाने के बाद नकली दूध बनाने का अपना देसी फ ार्मूला हमें बताया। जिसे हम पाठकों और अधिकारियों के लाभार्थ यहां प्रकाशित कर रहे हैं। नकली दूध में सात वस्तुओं का समावेश किया जाता है। जिनमें दो कैमिकल मिश्रण मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त घातक हैं- नकली दूध में लिक्विड डिटरजेंट, जो कपड़े धोने के काम आता है, सफेद दाने वाला यूरिया, जो बिना नमी के फ सल पर डाल दिए जाए तो फ सल को जला डालता हैै, टॉफी में डाले जाने वाला ग्लूकोज, पाम ऑयल, अरण्डी का तेल और पानी तथा लगभग 30-40 प्रतिशत सपरेटा दूध। इन्हें एक निश्चित अनुपात में मिलाकर फेंटा जाता है और यह नकली दूध तैयार किया जाता है जिससे मानव की प्रतिरोधक शक्ति का नाश हो रहा है।

इस दूध की पहचान के बारे में पूछने पर उक्त विक्रेता ने बताया कि इस दूध का पनीर नहीं बन सकता, दही बस उतनी ही मात्रा मेें जमेगी जितनी मात्रा में सप्रेटा मिला हुआ है बाकी पानी रह जायेगा। यह दूध असली दूध में 6-7 घंटे ज्यादा चलता है जबकि असली दूध जल्द फट जाता है।
बताया जाता है कि दूध को ज्यादा समय तक रखने और उसे खट्टïा होने से बचाने के लिए दूध का कारोबार करने वाले व्यापारी और मिल्क प्लांटों के मालिक इसमें कास्टिक सोडा, चूना, कास्टिक पोटाश हाइड्रोजन पैरोक्साइड फारमिलिन बेंजोयिक एसिड, सैलसिलिक एसिड और यूरिया तक मिला रहे हैं। इन रसायनों के प्रयोग से दूध तो जरूर कुछ समय के लिए खट्ï्ïटा होने से बच जाता है लेकिन इसमें मिले हए रासायनिक पदार्थ मानव शरीर में जहर घोलकर उन्हें मौत के मुंह में धकेल रहे हैं। अर्सेनिक युक्त दूध का लगातार सेवन करने वालों को तो पैप्टिक अल्सर, जिगर व आंतों का कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं। उल्लेखनीय है कि दूध में आर्सेनिक कास्टिक सोडा के मिलाने से आता है।
कास्टिक सोडा एक निष्क्रिय कारक रासायनिक यौगिक सोडियम हाइड्रोक्साइड होता है। इसमें आसैर्निक आक्साइड जैसा घातक जहर, सीसा निकिल और कई अन्य अघुलनशील धातुओं का समावेश रहता है। अशुद्घ रूप से प्राप्त कास्टिक सोड़े में इनकी मात्रा और भी बढ़ जाती है। दूध में मिलाये जा रहे अन्य निष्क्रिय कारकों की श्रेणी में कास्टिक पोटाश चूना और हाइड्रोजन पैराक्साइड जैसे रसायन भी मानव प्रयोग के लिए घातक होते हैं।
इसी तरह फार्मिलिन परीक्षक श्रेणी का एक रासायनिक यौगिक फारमेल्डिहाइड है जो जीवाणु एवं बैक्टीरिया को दूध में पनपने से रोकता है। इस रसायन के मिल जाने से दूध एकाध दिन ही नहीं, वर्षों तक खïट्टा नहïीं होता। लेकिन यह दूध मानव प्रयोग के योग्य नहीं है।
-चंद्र शेखर शास्त्री

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

yeh heraferi sirf mahanagron men hi nahi
balaki chote chote saharon and twon = kasbon tak
ho rahi hai. Abhi men Naitaal aur Almora gaya tha wahan bhi nakali doodh dharalle se bik raha
hai. Isme janchetna ke bawzood koi sudhar nahi
aa sakta kyonki consumer bebas hai. Aaapka kahna theek hai ki jab tak prasasan Mook aur nishklriya rahega tab tak India me milawatkhori chalti rahegi. Jan jagran ke topic par aapko ish Blog ki badhai;
Pt. Kewal anand Joshi
kajoshi46@gmailcom.
9868716447