गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

भारत की विफल राजनीति का नतीजा है नेपाल का वर्तमान

भारत की विफल राजनीति का नतीजा है नेपाल का वर्तमान


जिस देश में राजा को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था, जिसमें दैवीय शक्तियों का वास माना जाता था, जहां 90 फीसदी आबादी धार्मिक हिंदुओं की है, फिर यकायक ऐसा क्या हुआ कि तथाकथित लोकतंत्र के नाम पर नेपाल नरेश के सारे अधिकार छीन लिए गए, देश से हिंदू राष्ट्र की अवधारणा मिटाने पर मुहर लगा दी गई और विश्व मे एकमात्र हिंदू राष्ट्र के रूप में प्रसिद्ध रॉयल नेपाल से रॉयल शब्द भी नौच लिया गया और उसे नया आवरण दिया गया धर्मनिरपेक्ष नेपाल...।

दरअसल यह एक दिन का घटनाक्रम नहीं है,इसके पीछे एक दशक से भी ज्यादा की योजनाएं हैं जो क्रियान्वित होते-होते अब मूर्त रूप में सामने आई हैं। इसमें माओवादियों को सामने रखकर चीन ने जहां कूटनीतिक सफलता पाई है,वहीं यह भारतीय विदेश नीति की विफलता का प्रतीक भी है।

भारत की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए हिमालय की तराई में बसे नेपाल का महत्व किसी भी सूरत में कम नहीं किया जा सकता, वहां किसकी सरकार है,उसकी क्या नीतियां ,किस रूप में क्रियान्वित होती हैं,से भारत प्रभावित होता है। यदि वहां मित्र सरकार है तो ठीक वरना वह हमारे दुश्मनों के लिए एक स्टेशन के रूप में, उनका अड्डा हो सकता है, जो हमारे लिए खतरनाक होगा।

नेपाल शुरू से ही चीन की निगाह में है, लेकिन पिछले एक दशक से भी अधिक समय से वहां माओवादियों की गतिविधियां दिखाई पड़ रही हैं, वर्ष 2001 में तत्कालीन नेपाल नरेश वीरेन्द्र व महारानी की हत्या कर युवराज दीपेन्द्र द्वारा आत्महत्या करने के पीछे का षडयंत्र आज तक रहस्य बना हुआ है। कुछ विश्लेषकों की राय में यह 1996 से नेपाल में अपनी गहरी पैठ बनाने वाले माओवादियों को मिली पहली सफलता थी, क्योंकि बाद में नेपाल नरेश बने ज्ञानेन्द्र माओवादियों के लिए तटस्थ माने जाते थे। चीन चाहता है कि नेपाल कम्यूनिस्टों के देश के रूप में जाना जाए और वह भारत में अपनी गतिविधियां अधिक सक्रिय रूप से क्रियान्वित कर सके। इसी लिए माओवादी वहां राजशाही से सत्ता छीन कर कम्यूनिस्ट गणतंत्र स्थापित करना चाहते थे। अब नेपाल से हिन्दूराष्ट्र की अवधारणा मिटाना और राजशाही को समाप्त करने में उसने सफलता पा ली है।

यह सब उस समय हुआ है जब भारत के दक्षिण,पूर्वोत्तर और उत्तर क्षेत्र के डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्य माओवादियों के निशाने पर हैं और वे नेपाल मे बैठकर भारत में अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। दरअसल नेपाल माओवादियों का हब बन गया है, जहां से वे भारत को नियंत्रित करने के अपने स्वप्र को साकार करना चाहते हैं।

-चंद्र शेखर शास्त्री

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शनिवार, अप्रैल 03, 2010

संन्यासी का असली कार्य संसार को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है - स्वामी कल्याण देव


संन्यासी का असली कार्य संसार को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है - स्वामी कल्याण देव


बात पांच साल पुरानी है। मैं और मेरे कवि मित्र श्री अवधेश शर्मा, जिन्होंने स्वामी कल्याणदेव जी की प्रेरणा से मेरे संपादन में रामचरित मानस की शैली में चौपाई सोरठा आदि छंद में पश्चिमी उत्तरप्रदेश की भाषा में प्रथम बार गीता का काव्यानुवाद किया था, पुस्तक के प्रकाशन के बाद उसकी प्रति स्वामी जी को भेंट करने गए। मुजफ्फरनगर पहुंचने से पहले ही हमें पता चल गया था कि स्वामी जी भोपा रोड़ पर गांधी पॉलीटेक्निक स्थित अपनी कुटिया पर हैं तो मन में दर्शन की इच्छा वेगवती नदी की तरह उफान पर आने लगी। याद आने लगा कि लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व जब श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर मोदीनगर में मेरे पिताश्री की कृपा से स्वामी जी के मुझे प्रथम दर्शन हुए थे तो मैं उनके विचार चिंतन में किस प्रकार खो गया था। स्वामी जी मंदिर के अतिथिगृह में पधारे हुए थे और निरंतर कर्मलीन रहते थे। जब मैंने उनके चरण स्पर्श किए तो आशीर्वाद देते हुए उन्होंने बैठने के लिए कहा। मैं उनके चरणों में बैठ गया। उन्होंने प्लेट में पहले से रखे केले उठाए और छीलकर मुझे दिए। संत के हाथों से प्रसाद पाकर मैं धन्य हो गया। इसके बाद उन्होंने अपने कागजों से कुछ पोस्ट कार्ड निकाले और मुझे देते हुए कहा कि मैं बोल रहा हूं और तुम पत्र लिखो। मैंने स्वामी जी के कथ्य को लिपि दी और उन्हें दे दिए। स्वामी जी ने शिक्षा के समुचित प्रबंध के लिए किन्हीं विद्यालयों के लिए शिक्षा अधिकारियों को ये पत्र लिखवाए थे।

संतों की जीवन शैली से तो मैं गुरुकुलीय शिक्षा के कारण परिचित था, मैने नए नए कौपीन बांधे और उत्तरीय धारण किए अनेक संतों के दर्शन किए थे, लेकिन मैं पहली बार किसी ऐसे विरक्त संत के समीप था जो स्वयं तो फटे चिथड़े धारण किए हुए था लेकिन संसार के सौंदर्य के लिए अति आवश्यक शिक्षा का प्रचार प्रसार कर वास्तव में अज्ञान से मुक्त करना चाहता था, जिसमें करोड़ों रुपए की लागत आती है। इसलिए मैं मुग्ध हुए बिना न रह सका। वहां बैठे हुए मुझे अभी एक घंटा के लगभग हो गया था, लेकिन स्वामी जी लगातार अनेक अधिकारियों को पत्र लिखवाए जा रहे थे। मैं पत्र लिखने के साथ साथ विचार कर रहा था कि यदि सभी संत विश्व कल्याण की इसी भावना से ओतप्रोत हो जाएं तो भारत को पुन: विश्वगुरु बनने से कौन रोक सकता है। ...आखिर पत्र लेखन का सिलसिला बंद हुआ तो मैंने स्वामी जी से पूछा कि भारत के अनेक संत हिमालय पर तपस्या कर रहे है और जप तप से विश्व कल्याण को अग्रसर हैं ऐसे में आप जप तप छोडकर शिक्षा को इतना महत्व क्यों देते हैं। मैं गुरुकुल से आया ब्रह्मïचारी था, मेरे सरल स्वभाव से किए गए प्रश्न पर स्वामी जी ने मुझे समझाते हुए कहा कि संन्यासी का असली कार्य संसार को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है और सही मार्ग शिक्षा का है। यदि शिक्षा उचित होगी तो व्यक्ति कभी भी समाज का अहित नहीं करेगा और यदि शिक्षा में दोष हुआ तो वह कभी समाज का भला नहीं करेगा। इसलिए सबसे पहले मानव का शिक्षित होना जरूरी है। केवल उपदेश देने से संसार का भला नहीं हो सकता, इसके लिए कर्म करना होगा, शिक्षा का विस्तार करना होगा, यही मानवता की सच्ची सेवा है। मैं तो तमाम संतों और धर्माचार्यों से भी यही कहता हूं कि आश्रम छोड़ो और गांव गांव पैदल घूमकर संस्कृति का प्रचार करो शिक्षा का स्तर उठाओ, यही तपष्चर्या का जीवन है, यदि संस्कृति बचानी है तो शिक्षा के स्वरूप को बचाओ।

गाड़ी गांधी पॉलीटेक्निक पहुंच चुकी थी, अवधेश जी ने जैसे सोते से जगाया कि चलो स्वामी जी की कुटिया आ गई है तो चक्षुरुन्मीलित करते हुए मैं कार से उतरा। कुटिया के दाईं ओर जाल लगा एक कमरा सा बना था जहां आगंतुकों के लिए कुर्सियां रखी हुईं थीं। एक ओर मेज लगी हुई थी जिसके पीछे लगी कुर्सी पर शांति की प्रतिमूर्ति एक संत विराजमान थे। जो दर्शनीय थे, अपने स्नेहिल स्वभाव से ओतप्रोत किसी पुस्तक में मग्न थे। जब हम वहां पहुंचे तो उन्होंने सत्कार के साथ स्थान ग्रहण करने को कहा और जल आदि व्यवस्था के बाद अपने हाथों से छीलकर केले प्रसाद में दिए और आने का कारण पूछा। यह परम पूज्य स्वामी ओमानन्द ब्रह़मचारी जी से हमारा प्रथम परिचय था।

स्वामी ओमानन्द जी को हमने अपने आने का उद्देश्य बताते हुए निवेदन किया कि स्वामी कल्याणदेव जी की प्रेरणा से प्रकाशित नव अनूदित गीता की प्रति स्वामी जी को भेंट करनी है। तो स्वामी ओमानन्द जी ने बताया कि स्वामी जी रुग्ण हैं।... और वे हमसे बैठने को कहकर स्वामी जी के पास गए। थोड़ी ही देर में हमें बुला लिया गया। स्वामी जी रोगशैय्या पर थे। परंतु हमें देखकर उन्होंने स्वामी ओमानन्द ब्रह्मïचारी जी से बैठाने को कहा और गीता की प्रति माथे से लगाते हुए हमें आशीर्वाद दिया। उनके बैठने के इशारा करने पर हम वहीं बैठ गए। स्वामी जी स्पष्टï नहीं बोल पा रहे थे, उन्होंने स्वामी ओमानन्द जी को कुछ इशारा किया तो स्वामी ओमानन्द जी ने मोदक प्रसाद का डिब्बा स्वामी जी के हाथों में दे दिया। स्वामी जी ने अपने हाथों से हमें प्रसाद दिया और उनके आशीर्वाद से हम कृतार्थ हो गए।

घर घर में शिक्षा का दीपक जलाने वाले शिक्षाऋषि परम पूज्य स्वामी कल्याणदेव जी महाराज भौतिक शरीर को त्यागकर सूक्ष्म रूप में हमारे बीच विद्यमान हैं और उनके बताए मार्ग पर उनके परम शिष्य स्वामी ओमानन्द ब्रह्मïचारी जी महाराज के कुशल निर्देशन में शिक्षा की मशाल अहर्निश जलती रहेगी।

-चंद्र शेखर शास्त्री

सोने की स्याही से चित्र बनाता है कला साधक कन्हाई परिवार

भगवान कृष्ण के साक्षात दर्शन

होते हैं कन्हाई चित्रों में






सोने की स्याही से चित्र बनाता है कला


साधक कन्हाई परिवार


बहत्तर वर्षीय श्री कन्हाई जी आज भारत में चित्रकला के शिखर पुरुष हैं। सन्ï 2000 में भारत के राष्टï्रपति द्वारा उन्हें पद्मश्री सम्मान से विभूषित किया गया था और 4 साल बाद ही उनके बड़े पुत्र कृष्ण को भी पद्मश्री अलंकरण से भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया जा चुका। एक ही परिवार में पिता-पुत्र को मिलने वाला यह सम्मान अकेली मिसाल है।

कन्हाई जी के पूर्वज राजस्थान के मेड़ता से कलकत्ता आकर बस गए थे। वहीं इनके मन में चित्रकला के प्रति रुचि उत्पन्न हुई और गुरू नंदलाल जैन के सानिध्य में कला की बारीकियां सीखी, अपने समय के महान चित्रकार श्री नंदलाल जैन ने अपने चित्रों से मध्य प्रदेश के राजगढ़ के महाराजा चक्रधर सिंह के दरबार में चार चांद लगा दिए थे । 19 वर्ष की आयु में आपका विवाह हो गया और गृहस्थ की जिम्मेदारियों ने रोजगार की तलाश शुरू करा दी। आप मुंबई पहुंचे और प्रसिद्ध निदेशक गुरूदत्त से मुलाकात हुई। गुरूदत्त ने इन्हें अपनी फिल्म गोरी का कला निदेशक बना दिया, लेकिन फिल्मनगरी इन्हें अधिक दिनों तक बांधकर नहीं रख सकी। अचानक बम्बई छोड़ कोलकाता आ गए। जब वहां भी मन नहीं लगा तो वे कई स्थानों पर धूमते हुए वृंदावन आ गए। वृंदावन आने का कारण कन्हाई जी इस प्रकार बताते हैं--

दरअसल, जब मैं दर दर की खाक छानते हुए परेशान हो रहा था तभी एक रात सोते वक्त मुझे सपना दिखाई पड़ा। सपने में भगवान कृष्ण ने जैसे मुझे आदेश सा दिया। वृंदावन जाओ, सब ठीक हो जाएगा। जब कन्हाई जी वृंदावन आए तो सबसे पहले बांके बिहारी मंदिर पहुंचकर भगवान के चरण स्पर्श किए और फिर यह उनका रोज का नियम बन गया। सवेरे मंदिर में पहुंचकर घंटों भगवान की मूर्ति को निहारते रहते फिर चित्र बनाते और एक दिन ऐसा आया जब उनकी पेंटिग्स की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। आज उनके चित्र भारत में ही नहीं, अमेरिका, बिट्रेन, जर्मनी और सारी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।

प्राचीन काल में चित्र बनाने में सोने की स्याही की प्रयोग होता था, लेकिन अंग्रेजी के जमाने में इस कला को संरक्षण नहीं मिला तो वह लुप्तप्राय: हो गई। कन्हाई ने उस कला को पुनर्जीवित किया और स्वर्ण स्याही तथा नग के प्रयोग से कन्हाई कला को नया रूप दिया। श्री कन्हाई जी ने अपनी ब्रुश और रंगों से सभी देवी-देवताओं के रूप कैनवास पर उतारे हैं, लेकिन राधा-कृष्ण के बनाए चित्र अनुपम और अद्वितीय हैं। देखने में भव्य में चित्र शिल्प और भक्तिभाव की सुंदर अभिव्यक्ति है। कृष्ण लीला के चित्र ही क्यों बनाते हैं इस पर कन्हाई परिवार का कहना है कि श्री कृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण हैं। जितनी सुंदरता, विविधता और आकर्षण कान्हा की लीलाओं में हैं, उतनी शायद ही कहीं हो।

आप राजा रवि वर्मा से काफी प्रेरित रहे हैं। स्कूल ऑफ गोल्ड पेंटिग्स की स्थापना के बाद चित्रकार कन्हाई भगवान श्रीकृष्ण के सजीव लगती पेंटिंग्स के लिए सुविख्यात हो गए और उनके आब्सट्रैक्ट पेंटिंग्स शैली के चित्रों ने उन्हें विश्व में एक महान चित्रकार के रूप में पहचान दिलाई। उन्हें विश्वास है कि भगवान श्रीकृष्ण के चित्र बनाना ही उनकी पूजा करना है। कन्हाई की कला दैविक अनुभूति के प्रति उसकी प्रगाढ़ समझ और तूलिका पर पकड़ को प्रदर्शित करती है। उनकी चित्रकारी इतनी संगीतमय है कि उन्हें रंगों की झिलमिलाती कविता कहा गया है। अपने कला की सृजनात्मक उत्पत्ति के कारण वह एक अंतरराष्टï्रीय व्यक्तित्व बन गए हैं। अपनी कला साधना को निरंतर बनाए रखने के लिए उन्होंने 1956-57 के आस पास वृंदावन में एक आर्ट स्टूडियो खोला। सृजन के उनके अनोखे अंदाज को बाद में कन्हाई स्कूल ऑफ पेंटिंग्स के नाम से जाने लगा।

चित्रकार कृष्ण कन्हाई

चित्रकार कन्हाई के वरिष्ठï सुपुत्र कृष्ण कन्हाई ने भी अपने पिता और गुरू की छत्रछाया में गोल्ड पेटिंग की परंपरागत कला में महारत हासिल की है। फिर भी वे अपनी वंशानुगत परंपरा से बंधे नहीं रहे और इस कला को ज्यादा से ज्यादा संपन्न बनाने के लिए अपना अलग योगदान दिया। उन्होंने और अधिक दर्शनीय, लुभावने और आध्यात्मिक रूप से संपन्न कैनवास सृजित किए, जिसमें ग्रामीण ब्रज की उनकी चित्रकारी को अंतरराष्टï्रीय ख्याति प्राप्त हुई। उन्होंने राष्टï्रीय और अंतरराष्टï्रीय नेताओं के कई पोट्रेट भी बनाए। हमें कन्हाई जी और उनके दोनों पुत्रों पर गर्व है।

-चंद्र शेखर शास्त्री

शुक्रवार, अप्रैल 02, 2010

निशाने पर एन सी आर

निशाने पर एन सी आर


दिल्ली में पुलिस का दबाव और उत्तर प्रदेश व हरियाणा के सीमावर्ती इलाकों में बिना हील हुज्जत के, बिना जांच के किरायेदारी पर मिलते मकानों की सुविधा ने आतंकवादियों को राïष्टï्रीय राजधानी क्षेत्र में फैलने का अवसर दे दिया है। यही कारण है कि आतंकवादी, गाजियाबाद ,मेरठ, लोनी, पिलखुवा, मसूरी, सिकंदराबाद, बल्लभगढ़ और आसपास के इलाकों को अपने लिए अतिसुरक्षित मानने लगे हैं क्योंकि यहां न तो पुलिस को आतंकवादियों से लडऩे का प्रशिक्षण प्राप्त है और न ही मकान मालिक किराएदारों की पुलिस जांच कराने की जरूरत समझते हैं।

राष्टï्रीय राजधानी क्षेत्र उस लिहाज से भी सुरक्षित माना जाता है कि यहां आतंकवादियों को अपना नेटवर्क फैलाने के लिए स्थानीय लोग भी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ मंडल में तो आलम ये हैै कि पाकिस्तान से लोग पर्यटक वीजा पर आते हैं और इस क्षेत्र में आकर अपना पासपोर्ट फाड़ देते हैं कोई किसी का भाई हो जाता है और कोई बहनोई । गृह मंत्रालय में ऐसे अनेकों मामले जांच के लिए लंबित पड़े हैं, लेकिन बाहरी आदमी का आसानी से पता नहीं चल पाता, इन्हीं लोगों में कोई लश्करे तैय्यबा का प्रशिक्षित आतंकवादी होता है और कोई सिमी के लिए काम करने लगता है गाजियाबाद का मोदीनगर व मुरादनगर भी इससे अछूता नहीं हैै।

गाजियाबाद में तो आतंकवादियों के अनेक ठिकाने हैं, जिसका पता इस बात से चलता है कि इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी 814 को छुड़ाने के लिए कंधार ले जाकर रिहा कराए गए शेख उमर सईद, जिसने 1995 मे 3 विदेशी पर्यटकों का अपहरण भी किया था, को एसटीएफ ने गाजियाबाद के मसूरी मेें उसके ठिकाने से गिरफ्तार किया था ।

यह इलाका लाखों के इनामी कुख्यात आतंकवादी अब्दुल करीब टुंडा के प्रभाव का है, टुंडा पिलखुवा का रहने वाला है। इसके अलावा पिछले माह उत्तर प्रदेश पुलिस स्पेशल टास्कफोर्स के हाथों मारे गए सलीम सालार उर्फ डाक्टर को भी पुलिस ने गाजियाबाद के लोनी में ही दबोचा था। अभी कछ दिनों पहले पुलिस के जवाहर लाल स्टेडियम के पास हुई मुठभेड़ में मारा गया पाकिस्तानी खुंखार आतंकवादी अबू हम्जा बल्लभगढ़ की जगदीश कालोनी में राजेश नाम से छात्र बनकर रह रहा था, बाद में उसके कमरे से पुलिस ने कई एके 56 राइफलें सैकड़ों कारतूस हथगोले,आरडीएक्स और बम बनाने के सामान सहित सेटेलाइट फोन व कम्प्यूटर बरामद किया।

लश्कर व सिमी के आतंकवादी छात्र या सामान्य नागरिक की तरह रहते हैं उनके हावभाव से कोई भी नहीं कह सकता कि वे आतंकवादी होंगे,लेकिन जब वे वारदात कर जाते हैं तो पता चलता है कि पड़ोस में एक आतंकवादी रहता था।

ये आतंकवादी आईटी तकनीक के भी जानकार होते हैं। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मे 25 अप्रैल 1977 को प्रो. अमानुल्लाह सिद्ïदीकी द्वारा स्थापित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का नेटवर्क उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल,असम सहित दिल्ली तक फै ला हुआ है, उसके 400 पूर्ण कालिक सदस्य हैं और 20 हजार से अधिक लोग इसके गतिविधियों मे लिप्त हैं और 27 सिंतबर 2001 से आतंकवादी गतिविधियों के कारण प्रतिबंधित है। इन्हीं आतंकवादियों के कारनामे अब छोटे-छोटे कस्बों में भी दिखाई देने लगे हैं। मोदी नगर में बस में आरडीएक्स विस्फोट, मुरादनगर में सहारनपुर अंबाला पैसेंजर में बम विस्फोट, दुहाई में डीटीसी बस में बम विस्फ ोट आदि अनेक घटनाएं हैैं जो इस इलाके में आतंकवादियों के ठिकाने होने की पुष्टि करती हैं।

-चंद्र शेखर शास्त्री

दूध के नाम पर...

दूध के नाम पर...
हालांकि यह सिद्ध कर पाना बहुत कठिन कार्य है कि कौन सा दूध असली है और कौन-सा नकली! वैज्ञानिक इस अनुसंधान में लगे हुए हैं, जिससे जल्द ही मिलावट का पता चल सकेगा। आज जिस पद्धति से नमूनों की जांच हो रही है, उसमें सिर्फ जानवरों की चर्बी और सोडियम सल्फेट के अत्यधिक मिश्रण वाला दूध ही पकड़ में आ रहा हैै। इस कारण बहुत से ऐसे दुग्ध विक्रेता, जिनके पास न तो अपनी गाय या भैंस ही है और न ही वे किसी पशु पालक से दूध खरीदते हंै, फिर भी दूध बेचने का उनका धंधा खूब फल-फूल रहा है। इस प्रकार के दूध वालों की पकड़ ऊपर तक है। वे खाद्य निरीक्षकों की मार्फत अथवा सीधे स्तर पर अधिकारियों से संपर्क बनाकर रखते हैं और सेंपल भरे जाने के बाद भी धड़ल्ले से नकली दूध बेच रहे हैं।
देश में बड़े स्तर पर नकली दूध का निर्माण हो रहा है और शहरों में यह बाहर से भी लाकर बेचा जा रहा है। एक दूध विक्रेता ने बहुत विश्वास दिलाने के बाद नकली दूध बनाने का अपना देसी फ ार्मूला हमें बताया। जिसे हम पाठकों और अधिकारियों के लाभार्थ यहां प्रकाशित कर रहे हैं। नकली दूध में सात वस्तुओं का समावेश किया जाता है। जिनमें दो कैमिकल मिश्रण मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त घातक हैं- नकली दूध में लिक्विड डिटरजेंट, जो कपड़े धोने के काम आता है, सफेद दाने वाला यूरिया, जो बिना नमी के फ सल पर डाल दिए जाए तो फ सल को जला डालता हैै, टॉफी में डाले जाने वाला ग्लूकोज, पाम ऑयल, अरण्डी का तेल और पानी तथा लगभग 30-40 प्रतिशत सपरेटा दूध। इन्हें एक निश्चित अनुपात में मिलाकर फेंटा जाता है और यह नकली दूध तैयार किया जाता है जिससे मानव की प्रतिरोधक शक्ति का नाश हो रहा है।

इस दूध की पहचान के बारे में पूछने पर उक्त विक्रेता ने बताया कि इस दूध का पनीर नहीं बन सकता, दही बस उतनी ही मात्रा मेें जमेगी जितनी मात्रा में सप्रेटा मिला हुआ है बाकी पानी रह जायेगा। यह दूध असली दूध में 6-7 घंटे ज्यादा चलता है जबकि असली दूध जल्द फट जाता है।
बताया जाता है कि दूध को ज्यादा समय तक रखने और उसे खट्टïा होने से बचाने के लिए दूध का कारोबार करने वाले व्यापारी और मिल्क प्लांटों के मालिक इसमें कास्टिक सोडा, चूना, कास्टिक पोटाश हाइड्रोजन पैरोक्साइड फारमिलिन बेंजोयिक एसिड, सैलसिलिक एसिड और यूरिया तक मिला रहे हैं। इन रसायनों के प्रयोग से दूध तो जरूर कुछ समय के लिए खट्ï्ïटा होने से बच जाता है लेकिन इसमें मिले हए रासायनिक पदार्थ मानव शरीर में जहर घोलकर उन्हें मौत के मुंह में धकेल रहे हैं। अर्सेनिक युक्त दूध का लगातार सेवन करने वालों को तो पैप्टिक अल्सर, जिगर व आंतों का कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं। उल्लेखनीय है कि दूध में आर्सेनिक कास्टिक सोडा के मिलाने से आता है।
कास्टिक सोडा एक निष्क्रिय कारक रासायनिक यौगिक सोडियम हाइड्रोक्साइड होता है। इसमें आसैर्निक आक्साइड जैसा घातक जहर, सीसा निकिल और कई अन्य अघुलनशील धातुओं का समावेश रहता है। अशुद्घ रूप से प्राप्त कास्टिक सोड़े में इनकी मात्रा और भी बढ़ जाती है। दूध में मिलाये जा रहे अन्य निष्क्रिय कारकों की श्रेणी में कास्टिक पोटाश चूना और हाइड्रोजन पैराक्साइड जैसे रसायन भी मानव प्रयोग के लिए घातक होते हैं।
इसी तरह फार्मिलिन परीक्षक श्रेणी का एक रासायनिक यौगिक फारमेल्डिहाइड है जो जीवाणु एवं बैक्टीरिया को दूध में पनपने से रोकता है। इस रसायन के मिल जाने से दूध एकाध दिन ही नहीं, वर्षों तक खïट्टा नहïीं होता। लेकिन यह दूध मानव प्रयोग के योग्य नहीं है।
-चंद्र शेखर शास्त्री