गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

भारत की विफल राजनीति का नतीजा है नेपाल का वर्तमान

भारत की विफल राजनीति का नतीजा है नेपाल का वर्तमान


जिस देश में राजा को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था, जिसमें दैवीय शक्तियों का वास माना जाता था, जहां 90 फीसदी आबादी धार्मिक हिंदुओं की है, फिर यकायक ऐसा क्या हुआ कि तथाकथित लोकतंत्र के नाम पर नेपाल नरेश के सारे अधिकार छीन लिए गए, देश से हिंदू राष्ट्र की अवधारणा मिटाने पर मुहर लगा दी गई और विश्व मे एकमात्र हिंदू राष्ट्र के रूप में प्रसिद्ध रॉयल नेपाल से रॉयल शब्द भी नौच लिया गया और उसे नया आवरण दिया गया धर्मनिरपेक्ष नेपाल...।

दरअसल यह एक दिन का घटनाक्रम नहीं है,इसके पीछे एक दशक से भी ज्यादा की योजनाएं हैं जो क्रियान्वित होते-होते अब मूर्त रूप में सामने आई हैं। इसमें माओवादियों को सामने रखकर चीन ने जहां कूटनीतिक सफलता पाई है,वहीं यह भारतीय विदेश नीति की विफलता का प्रतीक भी है।

भारत की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए हिमालय की तराई में बसे नेपाल का महत्व किसी भी सूरत में कम नहीं किया जा सकता, वहां किसकी सरकार है,उसकी क्या नीतियां ,किस रूप में क्रियान्वित होती हैं,से भारत प्रभावित होता है। यदि वहां मित्र सरकार है तो ठीक वरना वह हमारे दुश्मनों के लिए एक स्टेशन के रूप में, उनका अड्डा हो सकता है, जो हमारे लिए खतरनाक होगा।

नेपाल शुरू से ही चीन की निगाह में है, लेकिन पिछले एक दशक से भी अधिक समय से वहां माओवादियों की गतिविधियां दिखाई पड़ रही हैं, वर्ष 2001 में तत्कालीन नेपाल नरेश वीरेन्द्र व महारानी की हत्या कर युवराज दीपेन्द्र द्वारा आत्महत्या करने के पीछे का षडयंत्र आज तक रहस्य बना हुआ है। कुछ विश्लेषकों की राय में यह 1996 से नेपाल में अपनी गहरी पैठ बनाने वाले माओवादियों को मिली पहली सफलता थी, क्योंकि बाद में नेपाल नरेश बने ज्ञानेन्द्र माओवादियों के लिए तटस्थ माने जाते थे। चीन चाहता है कि नेपाल कम्यूनिस्टों के देश के रूप में जाना जाए और वह भारत में अपनी गतिविधियां अधिक सक्रिय रूप से क्रियान्वित कर सके। इसी लिए माओवादी वहां राजशाही से सत्ता छीन कर कम्यूनिस्ट गणतंत्र स्थापित करना चाहते थे। अब नेपाल से हिन्दूराष्ट्र की अवधारणा मिटाना और राजशाही को समाप्त करने में उसने सफलता पा ली है।

यह सब उस समय हुआ है जब भारत के दक्षिण,पूर्वोत्तर और उत्तर क्षेत्र के डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्य माओवादियों के निशाने पर हैं और वे नेपाल मे बैठकर भारत में अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। दरअसल नेपाल माओवादियों का हब बन गया है, जहां से वे भारत को नियंत्रित करने के अपने स्वप्र को साकार करना चाहते हैं।

-चंद्र शेखर शास्त्री

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5 टिप्‍पणियां:

उल्लू का पठ्ठा ने कहा…

में आप से बिलकुल सहमत हूँ...भारत को नेपाल के संधर्भ में अपनी विदेश नीति की समीक्षा करनी चाहिए

Khushdeep Sehgal ने कहा…

चंद्रशेखर भाई,
माओवादी नेपाल में सत्ता में आ गए थे...लेकिन भारत सरकार ने उनकी सरकार नहीं चलने दी...यहां हमारी सरकार ने चूक की है...माओवादी अब पहले से भी ज़्यादा कट्टर भारत के दुश्मन हो गए हैं...कोई शक नहीं कि भारत में माओवादियों को नेपाल के माओवादियों से हथियार और समर्थन मिल रहा हो...भारत से सटे नेपाल के इलाकों में माओवादी खास तौर पर भारत विरोधी अभियान चलाए हुए हैं...चीन की नेपाल के माओवादियों से हमेशा अच्छी पिलती रही है...भारत को चाहिए था कि माओवादियों के नेपाल की सत्ता में रहते ही उन पर चीन का प्रभाव कम करने की कोशिश करता...फिलहाल तो नेपाल की शांति के लिए शिव शंभू से ही प्रार्थना की जा सकती है...

जय हिंद...

बेनामी ने कहा…

नेपाल मे लोग यह मानते है की माओवादीयों ने भारत मे रहते हुए नेपाल में जनयुद्ध लडा। भारत की सरकार की नजरो के सामने। लेकिन आप कहते है की माओवादीयो के पैदाईश चीन की योजना का हिस्सा है। तो फिर क्या भारत की सरकार स्वयं अपने हितो के विपरित काम कर रही थी? अगर ऐसा है तो गलतफहमी कहा थी? अगर गलतफहमी थी तो फिर जिम्मेवार लोगो को सारे देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। वैसे आप अपनी जानकारीयो को दुरुस्त अवश्य कर लें।

बेनामी ने कहा…

I dont agree with you. india should not interfer in nepal's internal politics. Nepal bangladesh, pakistan are not friendly with indai because of this. Some one like rakesh Sood as ambassador to nepal definitely wrong decision from South Bloc @ delhi. As a nepali we love indian people but not your government policy.
sanepa2000@yahoo.com

saurabh ने कहा…

kutniti ki vifalta ya saflata, ka uddeshya bhartiya garima ko banaye rakhana hai.....aur bhartiya niti sabhi ki swatantrata aur unke samman me hai........atah ham wo prayas karna chahiye jo waha ki janta chahti hai......