गुरुवार, मार्च 04, 2010

संवेदनहीन सांत्वना

वे लाशों पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आते...
जब भी कोई बड़ा हादसा होता है तो तमाम राजनेता वहां संवेदना व्यक्त करनेे पहुंच जाते हैं, पीडि़तों के बीच पहुंच कर वे संवेदनाएं कम, बयानबाजी ज्यादा करते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब वे लाशों पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आते। इन राजनेताओं के आने से हादसे में मारे गये या घायलों के परिजनों को सांत्वना तो क्या मिलती, ये संवेदनाहीनता का शिकार और हो जाते हैं। क्योंकि जो पुलिस-प्रशासन या सरकारी अमला, स्वयंसेवी संगठन व चिकित्सक पीडि़तों की मदद करते, वे इन 'वी आई पी आकाओंÓ की खैर-मकदम में जुट जाते हैं। ... और ऐसे में सांत्वना का संवेदनाहरण हो जाता हैै।
हादसे के बाद इन नेताओं की भीड़ उस हादसे से भी बड़ी हो जाती है, जिसका दंश हादसे के शिकार लोग झेल रहे होते हैं क्योंकि ये सत्ताधारी या सत्तालोलुप राजनेता, जो कभी न कभी कुर्सी पर विराजमान रहे हैं या वर्तमान में सरकार में हैं, 'अवसादÓ को 'अवसरÓ में बदलने के लिए हादसे को भी लाटरी के टिकट में तब्दील करने की पुरजोर कोशिश करते हैं। इनके लिए मातम भी कुर्सी पाने का खेल है, जनप्रतिनिधित्व की आड़ में हादसे को भुनाने के लिए सांत्वना के बजाए, राहत अफ़्जाई की कारगुजारियों पर निगाह रखने की बजाए, हाहाकार में भीड़ जोड़कर मदारी वाला तमाशा करना और पब्लिक में स्वयं को उनके ज्यादा निकट दिखाने के लिए बेसिरपैर की बयानबाजी करना और तमाम ऐसी कल्याणकारी घोषणाएं करना, जो कभी अमल में नहीं लाई जाएंगी, उनका शगल बन चुका हैै ।
किसी भी दुखद घटना पर राज्य के मुखिया का घटनास्थल पर पहुंचकर घोषणाएं करना, जांच बैठाना, मुआवजे देना और तबादले करना तो समझ आता है लेकिन तमाम राजनीतिक पार्र्टियों के ब्रांडेड नेताओं का हादसा स्थल के चक्कर लगाने से समझ नहीं आता कि ये लोग सिवाय बयानबाजी व शुष्क सांत्वना के पीडितों के लिए क्या कर सकते है? हां! इन राजनेताओं के अपनी पार्टी के समर्थकों के साथ पीडि़तों के बीच पहुंचने से उनके उस दुखद अहसास की पुन: पुन: पुनरावृत्ति अवश्य हुई है, जिसे वे भुलाना चाहते हैं। ऊपर से उनकी तरह-तरह की बयानबाजियों ने पीडि़तों को यही अहसास कराया है कि वे कुछ खो चुके हैं जो कभी नहीं पाया जा सकेगा। क्या संवेदनाओं के साथ यह राजनीतिक छेड़छाड़ किसी सूरत में उचित ठहराई जा सकती है?
इन राजनेताओं ने इस तरह के हादसों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या किया है? मेरठ में विक्टोरिया पार्क हादसा हुआ, उपहार सिनेमा आग की भेंंट चढ़ा, डबवाली में स्कूली बच्चे जल मरे, कुंभकोणम में हृदय विदारक दृश्य था, अभी कुछ दिन पहले दिल्ली के कीर्ति नगर व पांडव नगर में अग्रिकांड हुआ, इन नेताओं ने क्या किया? हां! जितने भी हादसों के वायस हैैंं, उन्हें इन्हीं राजनेताओं ने संरक्षण देने का काम जरूर किया है। आपने देखा होगा कि जब जब चुनाव पास आते हैं गरीबों की झुग्गियों में आग जरूर लगती है क्यों कि यदि नेता आग नहीं लगवाएगा तो राजनीति कैसे करेगा?
यदि ये राजनेता चाहते तो अपनी सरकारों के रहते वे ऐसे प्रयास जरूर करते कि इस प्रकार के अग्रिकांड न हों, वे कानून बनाकर उसका सख्ती से पालन कराने के लिए निश्चित जिम्मेदारी सौंपते, जिससे उनकी रचनात्मक भूमिका प्रकट होती, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि फिर उन्हें राजनीति करने का अवसर कहां मिलता!

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