बुधवार, मार्च 03, 2010

प्राण शक्ति का स्रोत है प्राणायाम

प्राण शरीर और मन के बीच का सेतू है। प्राण केवल मात्र सांस का आना जाना नहीं, बल्कि यह उस तत्व को इंगित करता है जो इस वायु और श्वास के माध्यम से जीवन के चक्र को निरंतर चलायमान रखती है। प्राणों का महिमामडंन करते हुए वेद कहते हैं। ओं भूरग्नये स्वाहा, ओं प्राणाय स्वाहा, ओं व्यानाय स्वाहा ओं स्वरादित्याय स्वाहा, ओं प्राणापानव्यानेभ्य: स्वाहा। यज्ञ करते समय प्राणों के लिए आहुतियां दी जाती है। आधुनिकतम तकनीकों से आज प्राणों के मनुष्य जीवन में औचित्य का सफल निरूपण किया जा सकता है। वैसे भी मनुष्य बिना भोजन और पानी के कुछ समय बिता सकता है लेकिन प्राणों के अभाव में मनुष्य कुछ क्षणों में ही बैचैन हो उठता है। मनुष्य के भावों और संवेगों का प्राणों के साथ अभिन्न संबंध है। क्रोध आने या ज्यादा हंसी आने पर सांस फूल जाती है। उदासी और दुख की घडिय़ों में सांसों की गति बहुत धीमी हो जाती है। इसी बात को ध्यान में रखकर जब भारत के मनीषियों ने प्रयोग किये तो पाया कि सांस का संबध मनुष्य जीवन में बहुत गहराई से जुड़ा है यही नही सांस को नियंत्रण में किया जाए तो आश्चर्यजनक परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। जैसे जैसे योगी और ऋषि प्रयोग करते गए प्राण सेतू से जुड़े रहस्य उनके सामने खुलते गए इससे जन्म हुआ अष्टांग योग के प्रमुख अंग प्राणायाम का। प्राणायाम, प्राणों के आयाम का अभ्यास है। इसकी उपलब्धि तब होती है जब साधक श्वास प्रश्वास पर मन एकाग्र करके प्राण के साथ उद्गीथ की उपासना करने में सफलता हासिल करता है। साधारण मनुष्य भी प्रतिदिन यदि कुछ मिनटों तक केवल अपनी सांसों पर ही मन एकाग्र करे तो कई शारीरिक और मानसिक दुर्बलताओं पर आसानी से विजय पा सकता है। प्राणायाम, चंचल मन को बस में करने में ब्रह्मïास्त्र सा कार्य करता है। भगवद्गीता में प्रभु कहते हैं कि नासिका छिद्रों द्वारा ही संचार करने वाले प्राण और अपान दोनों वायुओं को समान करके जो मननशील योगी मन इन्द्रियों एवं बुद्धि को वश में करनेवाला सतत मोक्ष मार्ग में तत्पर इच्छा भय एवं क्रोध से रहित होता है वह सदा मुक्त ही है। योगदर्शन में अनेक प्रकार के प्राणायाम का वर्णन मिलता है। जिन के करने से प्राणी को अकूत लाभ मिलते हैं। प्राण के मुख्यत: तीन आयाम हैं सांस लेना, सांस रोकना और सांस छोडऩा इसके अतिरिक्त दो सूक्ष्म आयाम और भी है जिनका संबध सांस रोकने के बाद छोडने और सांस पूरी तरह छोडऩे के बाद फिर से ग्रहण करने से है। इसी प्रकार प्राणायाम की अनेक विधियों में तीन प्रमुख और सहज क्रियाएं हैं। पहले गहरा सांस खींच कर यथाशक्ति रोकना, जब श्वास रोके रखना कठिन हो जाए तो धीमें से श्वास छोड़ देना। दूसरे में श्वास को छोड़कर फेफड़े पूरी तरह खाली कर लिए जाते हैं फिर सांस को रोक कर रखा जाता है। जब घबराहट महसूस हो या सांस रोके रखना कठिन लगने लगे तब धीरे धीरे गहरा श्वास खींच कर फिर से यही प्रक्रिया दोहराई जाती है। तीसरी विधि में सांस को एक दम से जहां के तहां रोक लिया जाता है । सांस छोड़ते समय या सांस लेते समय यथाशक्ति बीच में ही सांस रोककर यह क्रिया की जाती है। प्राणायाम की उपरोक्त पहली विधि से शरीर को जीवनदायिनी प्राण शक्ति मिलती है। जिससे जीवन में उत्साह और शरीर में कांति उत्पन्न होती है। प्राणायाम की दूसरी विधि से शरीर के अंदर की मलिनताओं का नाश होता है परिणाम स्वरूप शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति में भारी वृद्धि होती है। जीवन में आरोग्यता और शरीर में पुष्टता का समावेश होता है। प्राणायाम की तीसरी विधि से प्राणों पर नियत्रंण संभव होता जिससे चंचल मन की चंचलता स्थिरता में बदल जाती है। इसके अतिरिक्त भी प्राणायाम की कई विधियां योगीजनों ने विकसित की हैं। साधारण जीवन में मनुष्य प्राणों के प्रति अधिक जागरूक नही ंरहता है, जिसके कारण उसे कई रोगों और संवेगों का सामना करना पड़ता है। साधारणतया हम सांस उपरी तौर पर लेते रहते हैं, पूरा सांस न छोडऩे के कारण हमारे फेफड़ों में बासी वायु दबी रह जाती है। इस वायु में जहरीले तत्व इक_ïा होते रहते हैं यदि हम गहराई से सांस ले और सांस छोड़ें तो ये जहरीले तत्व श्वास के माध्यम से ही शरीर के बाहर चले जांएगे, लेकिन अज्ञानता और आलस्यवश हम सांस यंत्रवत सांस लेते रहते हैं। यदि हम प्रतिदिन केवल थोड़ा सा समय ही सांसों को ठीक तरीके से छोडऩे और लेने में उपयोग करें तो कई भयानक रोगों और मानसिक संवेगों से मुक्ति मिलना तय है।

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