जिस देश में राजा को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था, जिसमें दैवीय शक्तियों का वास माना जाता था, जहां 90 फीसदी आबादी धार्मिक हिंदुओं की है, फिर यकायक ऐसा क्या हुआ कि तथाकथित लोकतंत्र के नाम पर नेपाल नरेश के सारे अधिकार छीन लिए गए, देश से हिंदू राष्ट्र की अवधारणा मिटाने पर मुहर लगा दी गई और विश्व मे एकमात्र हिंदू राष्ट्र के रूप में प्रसिद्ध रॉयल नेपाल से रॉयल शब्द भी नौच लिया गया और उसे नया आवरण दिया गया धर्मनिरपेक्ष नेपाल...।
दरअसल यह एक दिन का घटनाक्रम नहीं है,इसके पीछे एक दशक से भी ज्यादा की योजनाएं हैं जो क्रियान्वित होते-होते अब मूर्त रूप में सामने आई हैं। इसमें माओवादियों को सामने रखकर चीन ने जहां कूटनीतिक सफलता पाई है,वहीं यह भारतीय विदेश नीति की विफलता का प्रतीक भी है।
भारत की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए हिमालय की तराई में बसे नेपाल का महत्व किसी भी सूरत में कम नहीं किया जा सकता, वहां किसकी सरकार है,उसकी क्या नीतियां ,किस रूप में क्रियान्वित होती हैं,से भारत प्रभावित होता है। यदि वहां मित्र सरकार है तो ठीक वरना वह हमारे दुश्मनों के लिए एक स्टेशन के रूप में, उनका अड्डा हो सकता है, जो हमारे लिए खतरनाक होगा।
नेपाल शुरू से ही चीन की निगाह में है, लेकिन पिछले एक दशक से भी अधिक समय से वहां माओवादियों की गतिविधियां दिखाई पड़ रही हैं, वर्ष 2001 में तत्कालीन नेपाल नरेश वीरेन्द्र व महारानी की हत्या कर युवराज दीपेन्द्र द्वारा आत्महत्या करने के पीछे का षडयंत्र आज तक रहस्य बना हुआ है। कुछ विश्लेषकों की राय में यह 1996 से नेपाल में अपनी गहरी पैठ बनाने वाले माओवादियों को मिली पहली सफलता थी, क्योंकि बाद में नेपाल नरेश बने ज्ञानेन्द्र माओवादियों के लिए तटस्थ माने जाते थे। चीन चाहता है कि नेपाल कम्यूनिस्टों के देश के रूप में जाना जाए और वह भारत में अपनी गतिविधियां अधिक सक्रिय रूप से क्रियान्वित कर सके। इसी लिए माओवादी वहां राजशाही से सत्ता छीन कर कम्यूनिस्ट गणतंत्र स्थापित करना चाहते थे। अब नेपाल से हिन्दूराष्ट्र की अवधारणा मिटाना और राजशाही को समाप्त करने में उसने सफलता पा ली है।
यह सब उस समय हुआ है जब भारत के दक्षिण,पूर्वोत्तर और उत्तर क्षेत्र के डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्य माओवादियों के निशाने पर हैं और वे नेपाल मे बैठकर भारत में अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। दरअसल नेपाल माओवादियों का हब बन गया है, जहां से वे भारत को नियंत्रित करने के अपने स्वप्र को साकार करना चाहते हैं।
-चंद्र शेखर शास्त्री